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श्री समयसारनाटक. सननी शैली के तत्त्व समजवामां आने तत्व समऊणमां अहं बुद्धिरूप अनिमाननो त्याग थयो, अने जेब ए अव्यने परखनारो बे, जेना श्रवणमां श्रागमना अक्षर पडे बे, एटले जे सिद्धांत सांजले , वली “झषेरियं पार्ष" आर्षित, झषि संबंधी वाणी ते जिनवाणी कहिये, ते जेना हृदयरूप नंमारमा समाणी बे, एटले नरी, तेमज . वणारसी दास कहे डे के जेनी नवस्थिति अल्प आवी रही , तेज पुरुष जिन प्रतिमाने जिन सरिषी प्रमाण करे ॥ ६ ॥
हवे वणारसी दास पोतानी कथनी कहेठेः-अथ वणारसी कथनः॥ चोपाईः ॥-जिन प्रतिमा जन दोष निकंदे; सीस नमाश् वनारसिवंदे; फिरि म नमांहि विचारे ऐसा; नाटक ग्रंथ परम पद जैसा ॥ ७ ॥ परम तत्व परचे इस मांही; गुन थानककी रचना नांही; यामे गुनथानक रस आवे; तो गरंथ अति शोना पावे ॥ ॥ दोहराः ॥-यह बिचारि संदेपसों, गुनथानक रस योज, वरनन करे बनारसी, कारन सिव पथ खोज ॥ sए ॥
अर्थः-जिन प्रतिमा के तेज मनुष्यना राग द्वेष मिथ्यात्वनुं तिकंदन करनार बे, तेथी वणारसीदास मस्तक नमावीने तेने वंदे बे. पनी वनारसीदास मनमा एम वि चारे ने के, श्रा नाटक ग्रंथमां जेवू परमपद ले तेवू श्राहीं कहे ॥ ७ ॥
श्रा ग्रंथनां उपादेयरूप परम तत्व, श्रात्म तत्वनो परिचय . पण गुणस्थान कनी रचना या ग्रंथमां नथी. हवे जो या ग्रंथमा गुणस्थानकनो रस श्रावे तो श्रा ग्रंय सारी शोजा पामे ॥ ७० ॥ ए प्रमाणे विचारीने संदेप मात्र गुण स्थान कना रसनी चीज, वणारसीदास वर्णन करें बे. ते वर्णन शिवपंथनुं कारण डे अने शिवपंथनी खोजना बे. ॥ ७ ॥
हवे गुणस्थानकनुं खरूप ले तेवू कहेजेः-श्रथ गुनथानक सरूप कथन:॥ दोहराः ॥-नियत एक विवहारसों, जीव चतुर्दश नेद; रंग जोग बहु विधि नयो, ज्युं पट सहज सुपेद. ॥ ७० ॥
अर्थः-निश्चे जीव एकरूप . श्रने व्यवहारनयथी जीव चौद नेदे ३. श्राहीं है ष्टांत आपेले, जेम वस्त्र सहज रंगमां सफेद बे. पण रंगना जोगश्री विचित्र प्रकारना रंगनुं थाय, तेम गुणस्थानकथी जीवनो तेवो नेद बे. ॥ ७ ॥
हवे चौद गुणस्थानकनां नाम कहेजेः-अथ चतुर्दश गुनथानक कथन:॥ सवैया श्कतीसाः-प्रथम मिथ्यात जो सासादन तीजो मिश्र, चतुरथो अव्रत पंचमो व्रतरंच है; बगे परमत्त सातमो अपरमतनाम, श्राठमो अपूरव करन सुख संच है; नौमो अनिवर्त्तनाव दशमो सूबमलोज, एकादशमो सु उपसंत मोह वंच
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