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________________ श्री समयसारनाटक. ७५७ ववानो चाह राखे तेज चोरी . ए नावित सात व्यसननुं विदारण करवाथी ब्रह्म लख्यो जाय बे.॥४६॥ हवे मोदना साधकनी व्यवस्था कहे:-अथ साधक व्यवस्थाः॥ दोहराः ॥-विसन नाव जामे नही, पौरुष अगम अपार; किये प्रगट घट सिं धुमाय, चौदह रतन उदार. ॥४७॥ अर्थः-जेना चित्तमा व्यसननाव पामिए नही, अने अगम अपार पुरुषातन पां मिए, तेणे घटरूप समुनमंथन करीने उदार के मुख्य चौदे रत्न प्रगट कीधां ॥४॥ हवे नावित चौद रत्ननुं वर्णन करेजेः-अथ नावित चौद रतनको बरननः ॥ सवैया इकतीसाः-लकमी सुबुद्धि, अनूभूति कस्तुनमनि, वैराग कलपवृक्ष, संत सुवचन है; ऐरावत उद्यिम प्रतीतिरंजा उदै विष, कामधेनु निर्जरा सुधा प्रमोद घन है; ध्यान चाप प्रेमरीति मदिरा विवेक वैद्य शुरुजाव चंउमा तुरंगरूप मन है; चौदह रतन ए प्रगट हो जहां तहां ज्ञानके उदोत घट सिंधुको मथन है.॥४॥ ॥ दोहाः ॥-किए श्रवस्थामे प्रगट, चौदह रतन रसाल, कबुं त्यागे कर्बु संग्रहै, विधि निषेधकी चाल. ॥ ४ ॥ अर्थः-सुबुकि उपनी तेतो लक्ष्मी उपनी १,थात्मानो अनुजव उपज्यो तेतो कौस्तु जमणि उपज्यो , वैराग उपज्यो तेतो कल्पवृक्ष उग्युं ३, नाषा समिति उपजी तेतो शंख उपज्यो ४, उद्यम उपज्यो तेतो ऐरावत हाथी उपज्यो ५, प्रतीत उपजी तेतो रंजा जपजी ६, कर्मनो उदय तेतो विष उपज्युं ७, कर्म निर्जरा थइ तेतो कामधेनु उपजी , श्रानंद उपज्यो तेतो अमृतघन उपज्यु ए, ध्यान जपज्युं तेतो चाप के सारंग धनुष उपज्यु १०, प्रेमरीत के० प्रेमनी लय उपनी तेतो मदीरा जपज्यो ११ विवेक उपज्यो तेतो धनवंतरि वैद्य उपन्यो १२, शुधनाव उपन्यो तेतो चंडमा उपन्यो. १३, मन शुरू थयुं तेतो सात मुखो अश्व उपन्यो. ९४, ए चऊद रत्नतो ज्यां ज्ञाननो उदय थवाथी पोताना ज्ञानरूप घट समुज्नुं मंथन थाय बे, त्यां उपजे डे एम जाणवू ॥ ४० ॥ साधनी अवस्थामा ए चौदे रत्न रसाल हतां ते प्रगट कीधां, ए चौद रत्नमां विधि निषेधनी चालमां एटले हेय, उपादेयनी चालमां कंश्क त्यागे अने कंश्क संग्रह करे ॥४॥ हवे नावित चन्द रत्न तेमां श्राउ रत्न त्यागवा योग्य अने उ रत्न ग्रहण करवा योग्य डे ते कहेजेः-अथ श्रष्ट रत्न हेय षट् उपादेय कथन:॥ दोहराः ॥- रमा, संष विष धनु सुरा, वेद धेनु हय हेय, नति रंजा गज क Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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