________________
श्री समयसारनाटक. जल वस्तु एक बे तेज जल विविध तरंगे करी लसित के० जिन्न जिन्न देखाय , तेम एक श्रात्मा अव्य ने ते गुण पर्यायथी अनेक रूप थयो ने तोपण अव्यार्थिक नये एक रूपेज देखीए . ॥ १४ ॥ हवे चउदमो एकांतनय ज्ञायक अज्ञायकनो प्रपंच कही बतावे :
अथ चतुर्दशम अज्ञायक शायक नय यह कथन:॥ सवैया इकतीसाः ॥-कोउ बाल बुद्धि कहे ज्ञायक सकति जोलों, तोलों ज्ञान अशुभ जगत मध्य जानिये; झायक सकति काल पाई मिटि जाई जब, तब श्र विरोध बोध विमल वखांनिये; परम प्रवीन कहे एसी तो न बने वाही, जैसे बिनु परगास सूरज न मानिये; तेसे विनुं ज्ञायक सकति न कहावे ज्ञान, यहतो न पल परत परवानिये. ॥ १५ ॥
अर्थः-जेनी बालकना जेवी तुब बुद्धि , एवो कोई शून्यवादी तथागत कहे के, ज्यां लगी ज्ञानमां ज्ञायक शक्ति , त्यां लगी जगत्मा झान श्रशुद्ध कहेवायडे, तेनो एज परमार्थ डे, के जे झायकपणुं ते विकल्परूप बे. अने विकल्पथी ज्ञान अशुद्ध थाय बे, तेथी निर्विकल्प शान शुफ बे. ज्यारे नवितव्यताने वशथी पोतानो समय प्रस्ताव पामीने शायक शक्ति ले ते मटी जाय, त्यारेज विकल्पना विरोधथी रहित एवं बोध के ज्ञान ते विमल के शुरू वखाणीए. हवे एने परम प्रवीण स्या छादी कहेजेः-अरे! जाई! जे तुं हायक एकतामां विकल्प मानीने शंका पामे, श्रने ज्ञायकपणुं अशुभ माने, ए वात बने नही. जेम प्रकाश विना सूर्य मान्यो न जाय अने प्रकाशश्रीज सूर्य मान्यो जाय, तेम शायक शक्ति विना ज्ञानपण कहेवाय नही, जो तमे अनुमानप्रमाणथी तमारो पद साधन करता नथी, तो प्रत्यक्ष प्रमाणथी पण तमारो पद प्रमाण कीधो न जाय, तेथी तमारो पद ते पदानास बे. ॥१५॥ हवे जेणे चनद एकांत नय हगवी दीधा एवो जे स्याहाद तेनी स्तुतिकरेजेः
अथ स्यादवाद प्रशंसा कथनः॥दोहराः ॥-इह विधि श्रातम ज्ञान हित, स्यादवाद परवान, जाके वचन बि चारसों, मूरख होश सुजान ॥ १६ ॥ स्यादवाद बातम सदा, ता कारन बलवान, शिव साधक बाधा रहित, अषे अखंडित थान ॥ १७ ॥ स्यादवाद अधिकार यह, कह्यो थलप विसतार, अमृत चंद मुनिवर कहे, साधक साधि वार ॥ १० ॥ __ अर्थः-श्रावी रीते श्रात्माना ज्ञाननो हितकारी स्याहाद मत , तेज प्रमाण जा णवो. जे स्याछादनी वचन युक्तिमा पूर्वे मूर्ख होय ते सुजाण थाय. ॥ १६ ॥ जे स्याछाद स्वरूप ने तेज श्रात्मानी दशा बे. ते कारणथी स्याहाद डे ते महा बलवान
Jain Education International
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only