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श्री समयसारनाटक.
७३७ रस गर्जित . तेने तो कोई विरलाज जाणे.॥७॥ हवे नव रसनुं वर्णन करतां नव रसनां नाम कहेजेः-अथ प्रथम नव रसके नामः-॥ कवित्त बंदः॥-प्रथम श्रृंगार वीर
जो रस, करुना तृतिय जगत सुखदायक; दास्य चतुर्थ रुष रस पंचम, बहम सुरस बिनब विनायक; सत्तम जय श्रष्टम रस अदनुत, नवमो शांत रसनिको नायक; ए नवरस एई नव नाटक, जो जहों मगन सो तहों लायक ॥ २ ॥
अर्थः-प्रथम श्रृंगार रस,बीजो वीर रस,अने त्रीजो करुणा रस,ते जगत्मां सुखदा यक .चोथो हास्य रस,पांचमो रौ रस,थने बगे बिनत्स रस, ते विनायक कहेतां चित्तनो नंग करनार बे. सातमो नय रस, श्राठमो अद्लुत रस, अनेनवमो शांत रस ते सर्व रसनो नायक बे. ए नव रस कहिए. ते नव रस नाटक रूप होय. जे प्राणी जे रसमां मन थई रह्यो बे तेने ते रस लायक बे. ॥ २ ॥
हवे नव रसना स्थाई नाव कहे;-श्रथ रस अवस्था कथन:॥ सवैया इकतीसाः ॥-सोनामे सिंगार बसै वीर पुरुषारथमे, हियेमे कोमल के रुना रस बखानिये; आनंदमे हास्य रंग मुंममे बिराजे रुख, बीज तहां जहां गि लान मन बानिये; चिंतामे नयानक अथाहतामे श्रदजुत, मायाको अरुचि ता मे शांत रस मानिये; एई नब रस नवरूप एई नावरूप, इन्हको विलेउन सुदृष्टि जग जानिये. ॥ ३ ॥
अर्थः-शोजामां श्रृंगार रसनो निवास बे. अर्थ साधन रूप पुरुषार्थमां वीर रसनो वास बे. हृदयनी कोमलतामा करुणा रसनो वास बे. श्रानंदनी प्राप्तिमां दास्य रसनो वास डे. रण संग्राममा रुंड मूंडपमेला होय, त्यां रोज रसनो वास बे. कोई सुगामणु स्थानक जोई मनमां ग्लानी श्रावे, त्यां बिजत्स रसनो वास बे. चिंतामां जय रसनो वास बे. जे कोई अथाग अघटमान वस्तु जाणिए त्यां श्रनुत रसनो वास बे. ज्यां मायानी अरुचि होय तहां शांत रसनो वास प्रमाण कहिए. ए नव रस ते जवरूप के० संसार रूप पण डे, अने एहिज नव रस नाव के उत्तम नावरूप पण बे; ए नव रसनो विलेन के० विवेक जे जे ते तो जगत्मां सुदृष्टिथी जाणीए ॥३॥ हवे एज नव रस नावरूप ज्ञानमा गनित जे ते एकज ठेकाणे देखाडे :
अथ नव रस झान गर्जित एकीनूत कथन:॥ उपय बंदः।- गुन विचार सिंगार, वीर जदिम उदार रुप; करुना सम रसरीत, हास हिरदे उबाह सुख; अष्ट करम दल दलन, रुड वरते तिहि थानक; तन विलेन बीनन, उंद पुखदसा नयानक; अजुत अनंत बल चिंतवत, शांत सहज वैराग धुव; नव रस विलास परगास तब, जब सुबोध घट प्रगट हुव ॥ ४ ॥
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