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श्री समयसारनाटक.
sou अर्थः- क्रिया करणी एक होय थने तेना करनारा जुगल के बे एवी वात जि नेश्वरना श्रागममा नथी कही, तेम पुद्गल अने जीव ए बेन एक क्रिया करे नही अथवा बीजानी क्रिया के अने करनार वली बीजोज , एपण वे नही, एटले पु दगलनी क्रिया जीव न करे अने जीवनी क्रिया पुद्गल न करे ॥ ७० ॥ ए रीते करे एक अने तेनुं फल जोगवनार बीजोज होय एवं बने नही, एवं जिनेश्वरना आग ममां नयी कह्यु, एटले पुदगलनी क्रियानुं फल जीव नोगवे नही; केमके जे कर्ता तेहिज नोक्ता; जे कर्म करे तेज फल जोगवे ए वात केहेवत प्रमाणे खरी बे. ॥७॥
नाव कर्मनी कर्त्तव्यता के क्रिया तेतो स्वयं सिक न थाय; एटले नाव कर्म पो तानी मेले सिझ नही थाय. तेथी एवं ठरे डे के जे जगत्नी क्रिया करे ते नाव क मनो कर्त्ता बे; एटले गमनागमन क्रिया करे तेज नाव कर्मनो कर्त्ता जगत् वासी जीव ॥ २ ॥ जीव ज कर्ता अने जीवज नोक्ता डे, जीवनी चल विचलताथी नाव कर्म उपजे , एथी नावित कर्म जीवनी चाल . ए नावित कर्मने पुजल करे नही, तेम जोगवे पण नही, एमां जे अद्वैत मतवाला द्विधा राखे बे; ते मिथ्या जाल बे ॥७३॥ तेमाटे जे मिथ्यात्वी जीव बे, ते नावित कर्मने करे . तेणे करी सुख फुःख श्रापदा संपदा सदा सहजे नोगवे ने ॥ ४ ॥ हवे एकांत वादिसांख्यमतना वचननुं वर्णन करे बे:-अथ एकांत वादी वर्णन:
॥ सवैया इकतीसाः ॥- कोई मूढ विकल एकंत पळ गहै कहै श्रातमा अकरतार पूरन परम है; तिन्हसो जु कोउकहै जीउ करता है तासो, फेरी कहै करमको करता करम है; ऐसे मिथ्यामगन मिथ्याती ब्रह्म घाती जीव, जिन्हेके हिये अना दि मोहको नरम है; तिन्हको मिथ्यात पूरि करिबेको कहै गुरु स्यादवाद परवान श्रतम धरम है ॥ ५॥
अर्थः- कोई मोह मूढ जीव ज्ञानवडे विकल एकांत पद ग्रहीने एम कहे ले के, आत्मा अकर्ता , परम पूर्ण डे, ते एकांत वादीने कोई एवं कहे के, आत्मा कर्ता , तेने सांख्यमति प्रमुख एकांत वादी कहे जे के, कर्मनो कर्त्ता कर्मज बे. एवा मिथ्यात्वमां मन मिथ्यात्व जीव ब्रह्म घाती बे. तेमना हैयामां अनादि का लथी मोह कर्म लाग्युं रहे बे, ते मिथ्यात्वी जीवनुं मिथ्यात दूर करवाने स्याहाद रूप जे आत्म धर्म , ते धर्मज बधी रीत प्रमाण करी कहे ॥ ५ ॥
हवे जेम स्याहाद वस्तु खरूप ले तेम कहे बेः-श्रथ स्याहाद कथनं:॥दोहाः॥-येतन करता नोगता, मिथ्या मगन अजान; नहि करता नहि नो गता, निदचे सम्यकवान ॥ ६ ॥ सवैया इकतीसा॥:- जैसे सांख्यमति कहै अलख
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