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प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो.
या मगन जरमके जरता; ते जिव जाव करमके करता ॥ ६४ ॥ दोहराः। - जे मिथ्या मति तिमरसों, लखे न जीव जीव; तेई जावित करमके, करता होइ सदीव | ६ ||५|| जे अशुद्ध परिनति धरे, करे श्रहं परमान; ते शुद्ध परिनाम के, करता होइ जान ॥ अर्थः- जे जीव दुष्ट बुद्धिवडे विकल बे, अज्ञानी बे, जे पोतानी ने पारकी रीत जाणता नथी, माया जालमां मग्न बे, चमनाजरता के० धणी बे, ते जीव जाव कर्मना करनारा बे ॥ ६४ ॥ जे जीव मिथ्यामति अंधकारथी जीव अजीवने जिन्न पणे जा पता नथी, ते जीव सदाकाल जावित कर्मना कर्त्ता बे, एटले पोतपोताना कर्मनो जे स्वाव तेनेज जावित कर्म कहिये ॥ ६५ ॥ जे जीव अशुद्ध परिणतिने धरेबे, सर्व क्रियामा अहंकार बुद्धिथी श्रहं कर्त्ता एवं प्रमाण करबे, ते जीव अजाण थका अ शुद्ध परिणामना कर्त्ता यायने ॥ ६६ ॥
अथ शिष्य प्रश्नः -
॥ दोहराः ॥ - शिष्य कहैं प्रभु तुझ कह्यो, दुविध करमको रूप; दर्व कर्म पुदगल मई, नाव कर्म चिप ॥ ६७ ॥ करता दरबित करमको, जीव न होइ त्रिकाल; ब इह जावित करम तुम कहो कौनकी चाल ॥ ६८ ॥ करता याको कौन है, कौन करे फल जोग; के पुदगल के श्रतमा, के हुहुको संयोग ॥ ६५ ॥
अर्थः- दवे शिष्य प्रश्न पुढे बे के, हे प्रभु ! तमे कयुं वे के, कर्मनुं स्वरूप वे प्रका रनुं बे; एकतो पुद्गलमय ते पुद्गल पिंडरूप द्रव्य कर्म बे, अने बीजुं नाव कर्म बे ते चिडूप के० चेतना विकार रूप बेः ॥ ६७ ॥ वली स्वामी तमे एवं कयुं के द्रव्य क मनो करनार जीव त्रणे कालमां नथी, त्यारे जावित कर्म तमे कोनी चाल कहो हो ? ॥ ६८ ॥ ए जावित कर्मनो कर्त्ता कोण बे, ने एना कर्म फलनो नोक्ता कोण बे ? पुद्गल कर्त्ता जोतावे ? के खात्मा कर्त्ता, जोक्ता बे ? किंवा पुल घने आत्मा ए बे हुनो संयोग कर्त्ता जोक्ता बे ? ॥ ६
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हवे या प्रश्ननो गुरु उत्तर थापेढे:- अथ गुरु उत्तर कथनं:
॥ दोहराः ॥ - क्रिया एक करता जुगल, यों न जिनागम मांहि अथवा करनी औरकी, और करे यों नाहि ॥ ७० ॥ करे और फल जोगवे, और बने नदि एम; जो करतासो जोगता, यहे यथावत जेम ॥ ७१ ॥ जाव कर्म कर्त्तव्यता, स्वयं सिद्धन हि हो; जो जगकी करनी करे, जग वासी जिय सोइ ॥ ७२ ॥ जिय करता जिय - जोगता, जाव कर्म जिय चालि; पुदगल करे न जोगवे, डुविधा मिथ्या जालि ॥ ७३ ॥ तातें जावित करमकों, करे मिथ्याती जीव; सुख दुख थापद संपदा, गुंजे सहजसदीव ॥ ७४ ॥
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