________________
उ०६
प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. किती जीव मनवचन ने कायाना योगथी तथा विषय नोगथी उदासीपणे रहे अने शुभ श्रात्म अव्यना अनुनवमां मग्न , तेश्री समकितीने शास्त्रमा सहज अनोक्ता पणे गायलो बे, एरीते पंमित ले ते वस्तुनी व्यवस्था अवधारीने एटले वस्तुनो स्व नाव विचारीने परजावने त्यागीने पोताना सहज स्वनावमां आवे बे, तेथी सुखी पुःखी इत्यादि विकल्पविना, कर्म संयोगरूप उपाधिविना, एवा श्रात्माने श्राराधीने झान दर्शन चारित्ररूप जोगनी जुगति साधी समाधि एटले सहज स्वरूपमा समायले. हवे अनोक्ता जीवनी श्रवस्थानुं वर्णन करे:- अथ जीव थनोक्ता वर्णनं:
॥ सवैया श्कतीसाः॥-चिनमुखा धारी ध्रुव धर्म अधिकारी गुन, रतन लंडारि अप हारी कर्म रोगको प्यारो पंमितनिको हुस्यारो मोख मारगमें, न्यारो पुदगलसों उजियारो उपयोगको; जाने निजपर तत्त रहे जगमें विरत्त, गहे न ममत्त मन वच काय जोगको; ता कारन ज्ञानी ज्ञानावरनादि करमको, करता न होइनोगता न होश नोगको. ॥ ५७ ॥ दोहाः॥-- निरनिलाष करनी करे, नोग अरुचि घट मांहि%B तातें साधक सिह सम करता जगता नांहि. ॥ ५ ॥
अर्थः- चेतना चिन्हनो धरनार, निश्चल स्वन्नाव ज्ञातापणुं तेनो अधिकारी, ज्ञा नादिक गुणरूप रत्नना नंडारनो मारी, कर्मरूप रोगनो विनाश करनार, पंमित नो प्यारो एटले तत्त्व ज्ञानीने वहन, मोदमार्गमां दुशीयार के सावधान, पौलिक धर्मथी जुदो रेहेनार, मतिश्रुत प्रमुख उपयोगनुं अजवावं जेना हृदयमां थयुंजे,पोता नां अने पारकां सर्व तत्वनो जाणनार, जगतमा विरक्तपणे रेहेनार, एटले वैरागी,मन वचन ने कायाना योगनी ममता नही राखनार माटे ज्ञानी जीव झानावरणीय प्रमुख कर्मनो कर्त्ता पण नश्री, श्रने फुःख सुखना नोगनो नोक्तापण नथी. ॥ ५७ ॥ श्वा विना क्रिया करवी, अने घटमिमां नोगनी रुचि नही राखवी, तेथी मुक्तिनो सा धक पुरुष सिझ समान कह्यो, अने ते कर्ता तथा नोक्ता नथी. ॥ ५७ ॥
हवे अहंबुछि थकी कर्त्तापणु थाय ते कदे:-अथ श्रहंबुद्धि वर्णन:॥ कवित्तबंदः ॥-ज्यों हिय अंध विकल मिथ्यात धर मृषा सकल विकलप उपजा वत; गहि एकंत पड श्रातमको, करता मानि अधोमुख धावत; त्यों जिनमती दरब चारित कर, करनी करि करतार कहावत; वंबित मुक्ति तथापि मूढमति, विनु सम कीत जवपार न पावत. ॥ ५५ ॥ चोपाई॥-चेतन अंक जीव लखि लीन्हा, पुजल क रम अचेतन चीन्हा; वासी एक खेतके दोऊ; यदपि तथापि मिले नहि कोऊ॥६॥
॥ दोहराः॥- निज निज नाउ क्रिया सहित, व्यापक व्यापि न को करता पुन ल करमत्ये जीव कहांसों हो. ॥ ६१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org