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________________ ४ प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. तराय कर्मनो नाश थयेथी अनंत बल उपजे, एटले अनंत वीर्यपणानो गुण उपजे बे. ए श्राप गुण उपजे. ॥४ए ॥ ॥इति श्री समयसार नाटक बालबोधरूप नवमो मोद हार समाप्तः ॥ ॥दोहराः॥ इति नि नाटिक ग्रथमें, कह्यो मोद अधिकार; अब बरनों संदेपसों, सरब विशुद्धीद्वार. ॥ ५० ॥ अर्थः- इति के० संपूर्ण नाटक समयसारविषे मोद हारनो अर्थ कह्यो ने हवे दशमुं संदेपथी सर्व विशुद्धि हारनुं वर्णन करुं बु॥ ५० ॥ हवे अंही सर्वउपाधि रहित शुभ श्रात्म खरूपनुं वर्णन करे :॥ सवैया इकतीसाः॥-करमको करता है जोगनिको नोगता है, जाकी प्रजुतामें ऐ सो कथन अहित है; जामें एक इंजियादि पंचधा कथन नांहि, सदा निरदोष बंध मोक्षसों रहित है; ज्ञानको समूह ज्ञान गम्य है सुनाज जाको, लोक व्यापी लोका तीत लोकमें महित है; शुद्ध वंस शुक चेतनाके रस अंश नयों, ऐसो हंस परम पु नीतता सहित है॥५१॥ दोहरा:-जो निहचे निरमल सदा, श्रादि मध्य अरु अंत; सो चिप बनारसी, जगतमांहि जयवंत ॥ ५५ ॥ अर्थः- कर्मनुं कर्त्तापणुं श्रने सुखदुःखनुं लोक्तापणु एवं जे लोक व्यवहारमा केहेवाय , ते जेनी प्रजुतामां ईश्वरताई , तेमां अहितकारी वली जेनी प्रजुता मां एकेंघिय प्रमुख पांच नेदर्नु केहे, ते पण श्रहितकारी,सत्य नथी. केमके जेस दा निर्दोष , तेना निश्चय स्वनावमां बंध नथी, धने मोद पण नथी, एवो जे बंध मोद रहित डे. त्यारे ए अव्य शुंबे, एवो प्रश्न उठे तेनो खुलासो करे के, ए ज्ञा ननो समूह जे पुंज ते रूप जे. जेनो स्वनाव ज्ञान गम्य, झान वडे जाणवामां आवे एवो बे, लोकमां सघले स्थले व्यापी रह्यो बे, लोकातीत के क्षेत्र लोकथी जुदो ने, ने लोकमां महित के पूजनीक उपादेय बे, अनादि कालनो एवोज चाल्यो आवे ते थी जेनो शुभ अवतंश के अने शुरू चेतनाना रस प्रदेशथी जरपूर , एवा जे हंस जे ते परम पुनीतता सहित एटले उत्कृष्ट शुद्धता सहित जे ॥५१॥ जे निश्चय स्वरूपमा सदा निर्मल , आदि मध्यने अंत्य श्रवस्थाने विषे एक रूप , ने तेज चिप बे. तेनी वणारसी स्तुति करे के एवा नगवान जगत्मा जयवंत थाो. ॥ ५ ॥ हवे जीवन अनोक्ता पणुने कर्त्ता पणु उरावे :- अथ जीव अकर्ता वर्णनं: ॥ चोपाई॥-जीव करम करता नदि ऐसो; रस नोगता सुनाउ न जैसो; मि थ्याम तिसों करता होई गये अज्ञान अकरता सोई ॥ ५३॥ अर्थः-जेम जीवने कर्मनो कर्त्ता न कहिये तेम रसनो नोक्ता पण न कहिये; जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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