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श्रीसमयसारनाटक. प्रमाणरूप अंग , तेज तेनी चतुरंगी सेना थई एम जाणवू. ए रीते ज्ञाता पुरुषे च क्रवर्त्तिनो देह धार्यों बे, तेम बतां पण ज्ञाता अतनके अशरीरीजेवो बे. ॥३॥ पूर्वे कही जे नवधा नक्ति तेनुं हवे वर्णन करेजेः- श्रथ नवधा नक्ति वर्णन:
॥दोहाः॥-श्रवन कीरतन चितवन, सेवन वंदन ध्यान; लघुता समता एकता, नौधा जक्ति प्रमान. ॥४॥
अर्थः- उपादेय स्वरूपने शांजलवं, किरतन करवू, चितवन कर, सेवा पूजा कर वी, वंदन स्तुति करवी, ध्यान धरवं, तन्मयता करवी, समाधि करवी, श्रने एकमेक पणुं, ए नौधा के नव नेदवडे नक्ति प्रमाण थायजे. ॥४॥ हवे जे ज्ञाता मोद सन्मुख थयो तेनी अनुनव दशा कहे :
अथ अनुजवी वचनं:॥ सवैया श्कतीसाः॥- कोई अनुनवी जीव कहै मेरे अनुनौमें, ललन विनेद निन्न करमको जाल है; जाने श्राप श्रापुकों जु थापु करी थापुविषे, उतपति नासध्रुव बारा असराल है। सारे विकलप मोसों न्यारे सरवथा मेरो निहचै सुनाउ यह विवहार चाल है; मैं तो शुद्ध चेतन अनंत चिन मुजा धारी, प्रजुता हमारी एक रूप तिहू काल है.
अर्थः-जे श्रात्मानो अनुभव पाम्यो तेज श्रनुजवी जीव एवू कहे डे, के मारा थ नुनवमां लक्षण नेदथकी कर्म जाल हवे निन्न दीसवा लागी. अने श्रात्माज कर्त्ता कारक, आत्माज करण कारक, थात्माज अाधार कारकविषे श्रात्माज कर्म कारकने जाणे. अने श्रहीं कोई पर्यायनी उत्पत्ति श्रने नाश , अने अव्य ध्रुवता पणे बे, ए त्रणे धारा अहीं असराल पणे वही रही डे, तोपण ए त्रणे धारा विकल्परूप , अने. माराथी तो सर्व विकल्प सर्वथा जुदाज बे, विकल्पमां तो कहीं निश्चय नथी. श्रने मारो तो चेतना स्वरूप निश्चय स्वजाव ,अने श्रागल कही जे त्रण धारा तेतो व्यव हार नयनी चालमां बे. या जे सिद्धांत वचन कहुँ नु तेणे करीने हुँतो शुरू चेतना स्वरूपी ढुं, अनंत चिन्मुडा धारी के अनंत ज्ञाननो धरवावालो ढुं, एहवी महारी प्रजुता त्रणे कालने विषे एक रूपे. ॥५॥
हवे चेतनाज स्वरूप बतावे ः-अथ चेतना वर्णन:॥सवैया इकतीसाः॥- निराकार चेतना कहावे दरसन गुन साकार चेतना शुद्ध ज्ञान गुण सार है; चेतना अद्वैत दोउ चेतन दरवतांहि, सामान विशेष सत्ताहीको विसतारहै; कोउ कहै चेतना चिनद नाही आत्मामें, चेतनाके नास होत त्रिविध वि कार है; लबनको नास सत्ता नास मूल वस्तु नास, तातें जीव दरवको चेतना श्रा
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