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________________ ६४ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. । श्रर्थः-पचारी के० बोलावीने गुरु कहे , के रे ! रुचिवंत तुं पोतानुं पद के स्थान तेने जाणतो नथी. पोतानुं चेतन लक्षण हश्यामां खोज. ए पोतानुं लक्षण पोताने विषे जे ते गुऊत के गुप्त नथी; तारूं स्वरूप सिक समान , स्वबंद के निज श्रा धीन , सदा अति निर्मल बे, पण मायानी जालना फंदमां पमयुं बे, तेमांधी बूटी शकतुं नथी; तारूं स्वरूप हंछनेविषे नथी एटले जम जालनी विविध दशामां नथी. तारामाज बे; पण तने सूजतुं नथी. ॥ ५॥ हवे ज्ञानना प्रकाश वडे ईश्वरताने पमाय ते समजावे : अथ ज्ञान महात्म्य कथनं:॥ सवैया तेईसाः॥-केश उदास रहै प्रजु कारन, केश कहीं नगि जाहि कहींके; केश प्रनाम करै गढि मूरति, केश पहार चढे चढि बीके केश कहे असमान के ऊपरि,केश कहे प्रनु हेछि जमीके;मेरो धनी नहिरदिशांतर मोमहि है मुदि सूजतनीके॥६॥ __ अर्थः- कोई पोताना परमेश्वरने उलखवाने उदासी थई बेसी रहे , कोई कई देत्रने विषे जतो रहे बे, कोई परमेश्वरनी घमेली मूर्तिने प्रणाम करे बे, कोई परमे श्वरने पामवाबीकामां बेसी पर्वत उपर चढे डे,कोई परमेश्वरने आस्मान उपर ले एवं कहे बे, कोई कहे जे के परमेश्वर जमीननी नीचे डे, (ए कुरानवालानी श्रद्धा ); पण ए विषे मारो निश्चय तो ए डे के मारो धणी तो कांश र देश नथी; पण माराविषेज बे. एम अनुजवथी मने सारं मालम पडे बे.॥ ६ ॥ ॥ दोहराः॥- कहै सुगुरु जो समकिती, परम उदासी हो; सुथिर चित्त अनुनौ करै, यह पद परसै सोश॥ ७ ॥ अर्थः- सद्गुरु कहे जे केजे समकिती होय ते परम उदासी रूप थर चित्तने स्थिर राखीने निज श्रनुनव श्रन्यासथी पोताना पदने पामे. ॥७॥ हवे मननी चंचलता दर्शावी तेने स्थिर केम राख ते उपदेशे बे: अथ मन स्वरूप कथनं:॥ सवैया इकतीसाः॥- बिनमें प्रवीन बिनहीमें मायासों मलीन, बिनकमें दीन दिन मांहि जेसो शक है; लिये दोरधूप बिन बिनमें अनंतरूप कोलाहल गनत मथानको सो तक है; नट कोसो थार किधों हार है रहट कोसो नदी कोसो नौर कि कुंजार कोसो चक्र है; ऐसो मन नामक सुथिर श्राजु केसो हो, उरहिको चंचल अनादि हीको वक्र है. ॥ ७ ॥ धायो सदा काल पै न पायो कहू साचो सुख रूपसों विमुख मुख कूपवास वसा है; धरमको घाती अधरमको संघाती महा, कुराफाती जाकी सं निपातीकीसी दसा है; मायाको ऊपटि गहै, कायासों लपटि रहै, चूल्यो भ्रम नीरमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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