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________________ ६७० प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. ___॥ दोहाः ॥- बंध बंधावे अंध व्है, आलसी अजान; मुक्ति हेतु करनी करे, ते नर उद्यमवान. ॥४ए ॥ __ अर्थः- जे नाव अंध थईने बंधने वधारे, ते अजाण थालसु कहेवाय ने अने जे मुक्ति हेतुने अर्थे क्रिया करे, ते मनुष्य उद्यमवंत कहेवाय बे ॥४॥ हवे जो ज्ञान होय तो वैराग्यपण होय अने जो वैराग्य न होयतो झान पण न होय, तेथी ज्ञान वैराग्यनुं सहचारिपणु:-अथज्ञानवैराग्य सहचारित्ववर्णनं:- कहे बे. ॥ सवैया इकतीसाः।- जब लगु जीव शुछ वस्तुको विचारे ध्यावै, तबलगु नोगसों उदासी सरबंग है; नोगमें मगन तब शानकी जगन नाहिं, जोग अनिलाषकी दशा मिथ्यात अंग है; तातें विषै नोगमें मगन सो मिथ्याति जीव, नोगसों उदासि सो समकिति अनंग है; ऐसी जानि नोगसों उदासि व्है मुगति साथै, यहै मन चंगतो कगेत मांहि गंग है. ॥ ५० ॥ अर्थः- ज्यांसुधी जीव शुद्ध वस्तुना विचारमा दोमतो होय, ज्यांसुधी सर्व अं गने विषे नोगथी उदासीनपणुं जोवामां आवे; श्रने ज्यारे नोगमां मगन रेहेतो होय, त्यारे तो ज्ञाननी जगन के० जागृती न होय, केमके लोग अनिलाषनी दशामां वर्त्त बुं तेतो मिथ्यात्वनुं अंग बे, तेथी विषयत्नोगमां मगन रहे ते जीव मिथ्यातनुं अंग , तेथी विषयनोगमां मगन रहे ते जीव मिथ्यात्वी कहेवाय, अने जे विषय जोगथी उ दासी रहे ते तो अनंग सम किती जे. एवं जाणीने अहो! नव्यलोको! लोगथी उदास थई, ने मुक्तिने साधो. ते उपर दृष्टांत कहे जे के, जेनुं मन चंगुळे तेने कथरोटमांज गंगा बे, मतलब के कथरोटमा नातां थका गंगा स्नान- फल ते पामे.॥५०॥ हवे मोदना अधिकारने विषे चार पदार्थनुं स्वरूप कहे : अथ पदार्थ चतुष्क कथन:॥ दोहाः॥- धरम श्ररथ थरु काम सिव, पुरुषारथ चतुरंग; कुधी कलपना गहि रहै, सुधी गहै सरवंग ॥५१॥ अर्थः- धर्म, अर्थ, काम, ने मोद, पुरुषार्थना ए चार अंग , ए पुरुषार्थ विषे कुधी के० कुमतिवालो पोतानी मति कल्पनाने कालीने बेसे बे, अने सुधी के० पंकि त पुरुष बे ते सर्वांगनुं ग्रहण करे .॥५१॥ __ हवे चारे पदार्थनी न्यारी न्यारी व्यवस्था सुमति अने कुमतिनामन श्राश्री कहे बेः- श्रथ पदार्थ व्यवस्था कथनं:- . ॥ सवैया इकतीसाः॥-कुलको श्राचार ताहि मूरख धरम कहै, पंमित धरम कहै वस्तु के सुनाउकों; खेहको खजानो ताहि अज्ञानी अरथ कहै, ज्ञानी कहै अरथ दरवदरसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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