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जैन आगम : एक परिचय] इनके छह, सात, दस, बीस और बयालीस भेद बताये हैं।
पहले कल्प मनुज जीवकल्प के छह भेद हैं-प्रव्राजन, मुंडन, शिक्षण, उपस्थापन, भोग और संवसन। इसमें दीक्षा के योग्य और अयोग्य व्यक्तियों का भी निर्देश है।
क्षेत्रकल्प २५१/२में जनपदों और उनकी राजधानियों का निर्देश है। कालकल्प में मासकल्प, पर्युषणकल्प, वृद्धवासकल्प आदि का भी वर्णन है। भावकल्प में दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, समिति, गुप्ति आदि पर चिन्तन है।
दूसरे कल्प के ७, तीसरे के १०, चौथे के २० और पाँचवे के ४२ भेदों का वर्णन है। ___इन पाँचों कल्पों का वर्णन प्रस्तुत भाष्य में हुआ है । अन्त में भाष्यकार संघदासगणी का नामोल्लेख भी हुआ है।
(५) निशीथभाष्य- इस भाष्य के रचयिता भी संघदासगणी माने जाते हैं। यह भाष्य 'निशीथ' नाम के आगम पर लिखा गया है।
विषयवस्तु- इसमें श्रमणाचार का विविध दृष्टियों से निरूपण हुआ है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें अनेक सरस कथाएँ हैं।
(६) व्यवहारभाष्य- इसमें भी श्रमण-श्रमणियों के आचार का वर्णन है।
(७) ओधनियुक्तिलघुभाष्य- इस भाष्य में गाथाएँ ३२२ हैं। इसमें ओघ, पिण्ड, श्रमणधर्म आदि बातों पर प्रकाश डाला गया है।
(८) ओघनियुक्तिभाष्य- इसमें २५१७ गाथाएँ हैं। इसका विषय भी ओघनियुक्ति जैसा ही है क्योंकि यह भाष्य उसी के
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