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[ जैन आगम : एक परिचय
में श्रमण- श्रमणियों के नियम, रहने की विधि और उसके १४४ भंग तथा उनके प्रायश्चित्त आदि का निर्देश है । फिर नक्षत्रमास, चन्द्रमास, ऋतुमास, सूर्यमास और अधिक मास का वर्णन है । जिनकल्पिक और स्थविरकल्पिक श्रमणों की क्रियाएँ, समवसरण, तीर्थंकर गणधर आहारक शरीरी, अनुत्तरदेव, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि की शुभ-अशुभ कर्म - प्रकृतियाँ, तीर्थकर की भाषा का विभिन्न भाषाओं में परिणमन आदि का प्रकाश डाला गया है। इसमें ग्राम-नगरों का भी उल्लेख है । स्थविरकल्पिकों की सामाचारी का भी वर्णन है ।
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महत्व - इस प्रकार इस ग्रन्थ में श्रमण सामाचारी के विस्तृत वर्णन के साथ-साथ प्रचुर मात्रा में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सामग्री भरी पड़ी है। डा. मोतीचन्द ने इस सामग्री का अपनी पुस्तक 'सार्थवाह' में 'यात्री और सार्थवाह' का सुन्दर आकलन किया है। इस युग की सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक परिस्थितियों का भी इस ग्रन्थ से काफी ज्ञान मिल जाता है ।
इसलिए इस ग्रन्थ का भारतीय साहित्य में भी अनूठा स्थान है । ( ४ ) पंचकल्पमहाभाष्य- यह संघदासगणी की दूसरी कृति है । यह पंचकल्पनिर्यूक्ति के विवेचन के रूप में है। इसमें कुल २६५५ गाथाएँ हैं जिनमें भाष्य की गाथाएँ २५७४ हैं ।
विषयवस्तु इसमें सर्वप्रथम जिनकल्प और स्थविरकल्प - ये दो भेद किये गये हैं । फिर श्रमणों की ज्ञान - चारित्र सम्पदा का वर्णन है कल्प शब्द के कई अर्थ बताये हैं ।
इस भाष्य में पाँच प्रकार के कल्पों का संक्षिप्त वर्णन है । फिर
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