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जैन आगम : एक परिचय] पद्य) (५) विशेषणवती (प्राकृत पद्य) (६) जीतकल्प (प्राकृत पद्य) (७) जीतकल्पभाष्य (प्राकृत पद्य) (८) अनुयोगद्वारचूर्णि (प्राकृत गद्य) (९) ध्यानशतक (प्राकृत पद्य)।
संघदासगणी- ये आगम साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान थे और छेदसूत्रों की अर्थ-परम्परा के तलस्पर्शी मर्मज्ञ थे। उन्होंने जिस विषय को छुआ उसकी अतल गहराई में उतर गए।
प्रमुख भाष्य- जिस प्रकार प्रत्येक आगम पर नियुक्ति नहीं लिखी गयी उसी प्रकार भाष्य भी नहीं लिखे गये। कुछ भाष्य मूल आगमों पर हैं तो कुछ नियुक्तियों पर । निम्न आगमों पर भाष्य मिलते हैं।
(१) आवश्यक, (२) दशवैकालिक, (३) उत्तराध्ययन, (४) बृहत्कल्प, (५) पंचकल्प, (६) व्यवहार, (७) निशीथ, (८) जीतकल्प, (९) ओघनियुक्ति, (१०) पिण्डनियुक्ति।
इन भाष्यों का संक्षिप्त परिचय निम्न है:
(१) विशेषावश्यकभाष्य- यह जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण की महत्वपूर्ण रचना है। आवश्यकसूत्र पर तीन भाष्य लिखे गये हैं- (१) मूलभाष्य, (२) भाष्य, (३) विशेषावश्यकभाष्य। पहले दो भाष्य संक्षिप्त है जो उनकी बहुत सी गाथाएँ विशेषावश्यकभाष्य में मिल गयी हैं अत: यह तीनों भाष्यों का प्रतिनिधित्व करता है। यह केवल प्रथम सामायिक अध्ययन पर ही लिखा गया है। इसमें ३६० गाथाएँ हैं।
विषयवस्तु- इसमें जैन आगमों में वर्णित सभी महत्वपूर्ण विषयों पर विचार किया गया है। ज्ञानवाद, प्रमाणवाद, आचार,
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