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[जैन आगम : एक परिचय करके शब्दों के प्रसंगानुकुल अर्थ निश्चित किये गये थे; इसलिए इनकी व्याख्या शैली अत्यन्त गूढ़ और संक्षिप्त थी। इनमें विषय को विस्तारपूर्वक नहीं समझाया गया था। इन नियुक्तियों के गुरुगम्भीर रहस्यों को प्रकट करने के लिए प्राकृत भाषा में जिन पद्यात्मक ग्रन्थों की रचना हुई वे भाष्य कहलाए। __ भाष्यों की रचनाशैली- भाष्यों में अधिकतर आर्या छन्द का प्रयोग हुआ है। इनकी भाषा प्राकृत है और रचना पद्य में हुई है। इनमें अनेक प्राचीन अनुश्रुतियाँ, लौकिक कथाएँ और परम्परागत श्रमणाचार का वर्णन है। इनकी भाषा में मागधी और शौरसेनी प्राकृत प्रमुख हैं।
भाष्यों के रचयिता- भाष्यों के रचयिता मुख्य रूप से दोहैं-एक जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण और दूसरे संघदासगणी।
जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण- विशेषावश्यक भाष्य और जीतकल्पभाष्य-ये दो भाष्य इनकी रचना प्रमाणित हो चुके हैं। ये आगम के उद्भट विद्वान थे। इनका काल वि.सं. ६५०-६६०के आसपास है। जीतकल्पचूर्णि (गाथा ५-१० ) में सिद्धसेन गणी ने इनके गुणों की प्रशंसा करते हुए बताया है कि ये अनुयोगधर, युगप्रधान, सर्वश्रुति और शास्त्र में कुशल, दर्शन-ज्ञानोपयोग के मार्गदर्शक हैं ।........
उक्त प्रशस्ति से स्पष्ट है कि वे आगम साहित्य के मर्मज्ञ थे। उनकी निम्न रचनाएँ प्राप्त होती हैं-(१) विशेषावश्यकभाष्य (प्राकृत पद्य) (२) विशेषावश्यकभाष्य स्वोपज्ञवृत्ति (अपूर्ण; संस्कृत गद्य में) (३) बृहत्संग्रहणी (प्राकृत पद्य) (४) बृहत्क्षेत्रसमास (प्राकृत
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