________________
जैन आगम : एक परिचय]
छठवें अध्ययन में बृहद् आचार कथा का प्रतिपादन है। महत् शब्द पर नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, प्रधान, प्रतीत्य और भाव-इन ८ दृष्टियों से चिन्तन किया गया है। ___ सातवाँ अध्ययन वाक्यशुद्धि है । इसमें सत्यभाषा, मृषाभाषा के दस-दस भेदों का वर्णन हुआ है । 'शुद्धि' शब्द पर भी निक्षेप की दृष्टि से चिन्तन है।
आठवें अध्ययन आचार-प्रणिधि में 'प्रणिधि' शब्द पर निक्षेपपूर्वक चिन्तन है। ___नवें अध्ययन का नाम विनयसमाधि है। इसमें भावविनय के लोकोपचार, अर्थनिमित्त, कामहेतु, भयनिमित्त और मोक्षनिमित्त, ये पाँच भेद बताकर मोक्षनिमित्तक विनय के दर्शन, ज्ञान, चारित्र तप और उपचार ये पाँच भेद पुनः किये गये हैं।
दशवें अध्ययन का नाम सभिक्षु है। इसमें 'स' और 'भिक्षु' दोनों शब्दों पर निक्षेप की दृष्टि से विचार किया गया है। __ 'चूलिका' में 'चूलिका' शब्द का चारों निक्षेपों की दृष्टि से वर्णन करके 'भावचूड़ा' को ही अभिप्रेत माना गया है।
विशेषताएँ- इस नियुक्ति में धार्मिक कथाओं और सूक्तियों के द्वारा सूत्र के अर्थ को स्पष्ट किया गया है। कहीं-कहीं शैली तार्किक भी है, यत्र-तत्र प्रश्नोत्तर शैली भी परिलक्षित होती है। कहीं-कहीं संवाद बड़े रोचक और ज्ञानवर्द्धक हैं।
(३) उत्तराध्ययननियुक्ति- इस नियुक्ति में ६०७ गाथाएँ हैं । यह भी दशवैकालिकनियुक्ति की शैली पर लिखी गयी है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org