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[ जैन आगम : एक परिचय
की रचनाओं में नहीं मिलता। साथ ही आचार्य ने इस नियुक्ति में जिन तथ्यों का समावेश किया है, उनकी पुनरावृत्ति अन्य नियुक्तियों में नहीं की है, वहाँ इस नियुक्ति को देखने का संकेत कर दिया है । अतः अन्य नियुक्तियों को समझने से पहले इस नियुक्ति का अध्ययन आवश्यक है । ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से भी इस नियुक्ति का अधिक महत्व है ।
(२) दशवैकालिक निर्युक्ति- इस निर्युक्ति का आधार दशवैकालिक सूत्र है । इसमें मूलसूत्र के अनुसार दस अध्ययन और दो चूलिकाएँ हैं । इसका परिमाण ३७१ श्लोक प्रमाण हैं ।
प्रथम अध्ययन द्रुमपुष्पिका में धर्म की प्रशंसा करते हुए लोक और लोकोत्तर धर्मों का वर्णन हुआ है ।
द्वितीय अध्ययन में धृति की स्थापना हुई है । ' श्रामण्य' शब्द की चार निक्षपों से और 'पूर्वक' शब्द की तेरह प्रकार से विचारणा है । भाव श्रमण का संक्षेप में हृदयग्राही वर्णन है ।
तीसरे अध्ययन में क्षुल्लिका अर्थात् लघु आचारकथा का अधिकार है । क्षुल्लक, आचार और कथा - इन तीनों पर निक्षेप दृष्टि से चिन्तन है ।
चौथे अध्ययन में षड्जीवनिकाय का निरूपण है। जीव को पहचानने के उपादान बताये हैं । द्रव्य और भावशास्त्र का भी निरूपण है ।
पाँचवाँ पिण्डैषणा अध्ययन भिक्षाविशुद्धि से सम्बन्धित है । इसमें पिण्ड और एषणा दोनों शब्दों पर निक्षेप की दृष्टि से चिन्तन हुआ है।
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