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________________ ५६ [जैन आगम : एक परिचय गया है। नवी दशा में ३० महामोहनीयस्थानों का वर्णन है। ये मोहनीय कर्मबंध के हेतुभूत ३० भेद हैं। इन भेदों में हिंसा, गुस रूप से अनाचार सेवन करना, केवल ज्ञानी की निन्दा करना, किसी पर मिथ्या कलंक लगाना, जादू-टोना करना आदि प्रमुख हैं। दसवीं दशा का नाम आयतिस्थान है। इसमें विभिन्न प्रकार के निदानों का वर्णन है। आयति का अर्थ जन्म-मरण का लाभ प्राप्त करना बताया है। निदान वासनाओं अथवा भौतिक सुखों की पूर्ति के लिए आत्मा का दृढ़ संकल्प है। यहाँ राजगृह नगर में भगवान महावीर के समवसरण में श्रेणिक-चेलना के दिव्यभव्य-तेजस्वी रूप को देखकर श्रमण-श्रमणियों द्वारा निदान करने की घटना का उल्लेख करके भगवान द्वारा उनको निदान के कटु परिणामों को समझाने का वर्णन है। विशेषताएँ- प्रस्तुत आगम में भगवान महावीर की जीवनी विस्तार से आठवीं दशा में मिलती है। इस आगम में चित्तसमाधि और धर्म-चिन्तवन का सुन्दर निरूपण हुआ है। इसके प्रणेता चरम श्रुतकेवली भद्रबाहु है। (२) बृहत्कल्प- प्रस्तुत आगम का छेदसूत्रों में गौरवपूर्ण स्थान है। अन्य छेदसूत्रों के समान इसमें भी आचार-सम्बधी विधि-निषेध, उत्सर्ग-अपवाद, प्रायश्चित्त आदि पर चर्चा उपल्ब्ध होती है। इसे 'कप्प सुत्तं' भी कहते हैं। विषयवस्तु- इसमें ६ उद्देशक, ८१ अधिकार और ४७३ श्लोक प्रमाण मूल पाठ है। प्रथम उद्देशक में ५० सूत्र हैं। इनमें पहले के ५ सूत्र ताल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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