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जैन आगम : एक परिचय]
छेदसूत्रों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार से है:
(१) दशाश्रुतस्कन्ध- यह छेदसूत्र है। ठाणांग में इसका दूसरा नाम आचारदशा (आयारदसा) भी दिया गया है। इसमें दोषों से बचने का विधान है।
विषयवस्तु- दशाश्रुतस्कन्ध में दस अध्ययन हैं। इसीलिए इसका नाम दशाश्रुतस्कन्ध है । इसका प्रमाण १८३० अनुष्टुप श्लोक है। इसमें २१६ गद्यसूत्र और ५२ पद्यसूत्र हैं। इसमें अध्ययनों को दशा अथवा उद्देशक कहा गया है।
प्रथम दशा में २० असमाधिस्थानों का वर्णन है। असमाधिस्थान वे होते हैं, जिनसे चित्त की शांति भंग होती है। दूसरी दशा में शबल दोषों का वर्णन है । शबल दोष का अर्थ है जिनसे चारित्र की निर्मलता दूषित एवं खण्डित होती है। तीसरी दशा में ३३ प्रकार की आशातनाओं का वर्णन है। आशातना गुरु आदि महान् पुरु षों के अपमान को कहा जाता है। इससे सम्यग्दर्शनादि गुण खण्डित हो जाते हैं। चतुर्थ दशा में आठ गणी संपदाओं का वर्णन है । गणी संघ के नायक अथवा आचार्य होते है । पाँचवीं दशा में दस प्रकार की चित्तसमाधि का वर्णन है। छठी दशा में ग्यारह उपासक प्रतिमाओं का वर्णन है। सातवीं दशा में श्रमण की बारह प्रतिमाओं का वर्णन है । आठवीं दशा में पर्युषणा कल्प का वर्णन है। पर्युषणा का अर्थ होता है आत्मा के समीप रहना, आत्मरमण करना और आत्मस्थ होना। दूसरा अर्थ है एक स्थान पर रहना। यहाँ विभिन्न अपेक्षाओं से पर्युषणा के ९ पर्यायवाची शब्द देकर इनका विवेचन भी किया
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