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________________ ४८ [जैन आगम : एक परिचय छब्बीसवें समाचारी अध्ययन में साधुचर्या का निरूपण है। · सत्ताईसवें अध्ययन का नाम खलुंकीय है। खलुंकीय शब्द का अर्थ दुष्ट बैल होता है । यहाँ यह बताया है कि जिस प्रकार दुष्ट बैल अपने स्वामी को दुख देता है, उसी प्रकार अविनीत शिष्य भी गुरू के लिए दुखदायी होता है। अट्ठाईसवें अध्ययन मोक्षमार्ग-गति में बताया गया है कि सम्यक् -दर्शन-ज्ञान-चारित्र ही मोक्षमार्ग के साधन हैं । इन तीनों की पूर्णता ही मोक्ष है। उन्तीसवें अध्ययन का नाम सम्यक्त्व-पराक्रम है। इसकी रचना प्रश्नोत्तर शैली में हुई है। इसमें संवेग-निर्वेद आदि ७३ स्थानों का प्रतिपादन है। यह प्रश्नोत्तरमाला सम्पूर्ण उत्तराध्ययन सूत्र का सार है। तीसवाँ अध्ययन तपोमार्गगति है। इस अध्ययन में बारह प्रकार के तपों और उनके अवान्तर भेदों का विस्तार से निरूपण इकत्तीसवें अध्ययन का नाम चरणविधि है। चरणविधि का अर्थ विवेकमूलक प्रवृत्ति है। साधना में बाधक तत्त्वों की सूची देकर उनसे बचने की प्रेरणा भी दी गयी है। बत्तीसवाँ अध्ययन अप्रमादस्थान है। इसमें साधकों को समस्त प्रमादस्थानों से बचने का उपदेश है। तेतीसवाँ अध्ययन कर्मप्रकृति है। इसमें आठों कर्मों और उनकी १४८ उत्तरप्रकृतियों का वर्णन, उनके बन्ध के कारण, उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति आदि का वर्णन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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