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[जैन आगम : एक परिचय विषयवस्तु- सूत्रकृतांग में स्वमत-परमत के रूप में तात्कालिक दर्शनों की चर्चा, जीव, अजीव आदि सात तत्त्व, तथा श्रमणों की चर्या का वर्णन है। इसमें १८० क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी और ३२ विनयवादी-इस प्रकार कुल ३६३ पर-मतों का निरसन करते हुए स्वमत (जिनमत) की प्रतिष्ठा की गयी है। . इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध के १६ अध्ययन और द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन है। ३३ उद्देशक, ३३ समुद्देशक और ३६००० पद हैं।
प्रथम श्रुतस्कन्ध के पहले अध्ययन का नाम समय है। इसके चार उद्देशक हैं। इसमें स्वमत का मंडन और परमत (३६३ मतों) का निरसन है।
दूसरे अध्ययन का नाम वैतालीय है। इसके तीन उद्देशक हैं। इसमें अनित्यता-संबोध और अभिमान आदि कषायों के त्याग तथा उपसर्गों को समभाव से सहन करने का उपदेश है।
तीसरे अध्ययन का नाम उपसर्गपरिज्ञा है। इसके चार उद्देशक हैं। इसमें प्रतिकुल उपसर्ग, अनुकूल उपसर्ग, विषादयुक्त वचन उपसर्गों को समभाव और स्थिरता एवं दृढ़ता से सहन करने की प्ररेणा दी गयी है।
चौथे अध्ययन का नाम स्त्रीपरिज्ञा है । इसके दो उद्देशक हैं। इसमें स्त्री संसर्ग से शीलनाश और शीलभ्रष्ट साधक की दशा का वर्णन करके स्त्री-सहवास से दूर रहने की प्रेरणा दी गयी है।
पाँचवा अध्ययन नरक-विभक्ति है। इसके दो उद्देशक हैं। इसमें नरकों के दुखों का वर्णन करके साधक को उससे शिक्षा
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