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________________ [जैन आगम : एक परिचय है। ज्ञान का सार संयम और संयम का सार मोक्ष प्रतिपादित किया - छठे अध्ययन का नाम धूत है। इसके पाँच उद्देशक हैं। धूत का अर्थ है मैल को साफ करना। इस अध्ययन में भी तप-साधना द्वारा आत्मा को निर्मल बनाने की प्रक्रिया बतायी गयी है। सातवें अध्ययन का नाम महापरिज्ञा है। यह मूल अध्ययन तो आज उपलब्ध नहीं है किन्तु इस पर लिखी हुई नियुक्ति आज भी विद्यमान है। नियुक्ति से ज्ञात होता है कि इसमें स्त्रीजन्य परीषह को समभाव से सहने का उपदेश दिया गया था। ___ आठवें अध्ययन के दो नाम मिलते हैं-विमोक्ष और विमोह। इसके आठ उद्देशक हैं। इसमें श्रमण के लिए समस्त भौतिक संसर्गों के त्याग का उपदेश है । इसके आठवें उद्देशक में पंडितमरण का हृदयस्पर्शी वर्णन है। नवें अध्ययन का नाम उपधानश्रुत है। इसके चार उद्देशक हैं । इसमें भगवान महावीर के साधक-जीवन का बड़ा रोमांचकारी और हृदयस्पर्शी चित्रण है। इस प्रकार वर्तमान आचारांग सूत्र में ८ अध्ययन और ४४ उद्देशक हैं (सातवें अध्ययन महापरिज्ञा और उसके सात उद्देशकों के विलुप्त होने के बाद)। वैसे इसमें ९ अध्ययन और ५१ उद्देशक थे। द्वितीय श्रुतस्कन्ध में ५ चूलाएँ है । इसे आचाराग्र भी कहा जाता है। इन पाँच चूलाओं में से चार चूलाएँ तो आचारांग में हैं और पाँचवीं चूला अत्यधिक विस्तृत होने के कारण अलग कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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