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________________ [ जैन आगम : एक परिचय संक्षिप्त परिचय, विषयवस्तु एवं भाषा-शैली आदि का परिचय निम्न प्रकार है । २४ (१) आचारांग सूत्र- यह बारह अंगों में प्रथम अंग है । इसमें आचार का वर्णन किया गया है अत: इसे सब अंगों का सार माना गया है । प्राचीनकाल में इस अंग का अध्ययन सर्वप्रथम किया जाता था । इसके अध्ययन के बाद ही अन्य श्रुत का अभ्यास साधक को कराया जाता था । रचयिता एवं रचनाकाल - आचारांग के रचयिता' गणधर सुधर्मा हैं और इसका रचनाकाल भगवान महावीर का समय है । भाषा आदि की दृष्टि से सभी विद्वान यह मान चुके हैं कि यह महावीरकालीन प्राचीनतम रचना है। इसकी भाषा वही है जो आज से ढाई हजार वर्ष पहले प्रचलित थी । 1 रचनाशैली - आचारांग में दो श्रुतस्कन्ध हैं । प्रथम श्रुतस्कन्ध की रचना शैली द्वितीय श्रुतस्कन्ध की रचनाशैली से सर्वथा भिन्न है । प्रथम श्रुतस्कन्ध के आठवें अध्ययन के सातवें उद्देशक तक की रचना चौर्ण शैली में हुई है । चौर्ण शैली के बारे में दशवैकालिकनिर्युक्ति (गाथा १७४ ) में कहा गया है कि 'जो अर्थ - बहुल, महार्थ, हेतु, निपात और उपसर्ग से गम्भीर, बहुपाद, अव्यवच्छिन्न (विराम रहित) गम और नय से विशुद्ध होता है, वह चौर्ण पद है। आठवाँ उद्देशक तथा नवाँ अध्ययन पद्यात्मक है। दूसरे श्रुतस्कन्ध में पाँच चूलाएँ हैं। उनके पन्द्रह अध्ययन मुख्य रूप से गद्यात्मक हैं और सोलहवाँ अध्ययन पद्यात्मक है । १ रचयिता से तात्पर्य आगम की सूत्ररूप रचना से है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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