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जैन आगम : एक परिचय]
(४) आगम विच्छिन्न होने का सबसे बड़ा कारण प्राचीन युगीन भारत में लेखन परम्परा का अभाव था। यद्यपि लिपिविद्या का आविष्कार आदि तीर्थंकर ऋषभदेव ने किया था, प्रज्ञापनासूत्र में अठारह लिपियों का वर्णन मिलता है, पुरूष की ७२ कलाओं में भी लेखन-कला का प्रमुख स्थान है, फिर भी प्राचीन भारत में लेखन-परम्परा का अभाव था। सिकन्दर के सेनापति निआस ने अपने संस्मरणों में बताया है कि भारतवासी कागज बनाना जानते हैं। ईसा की दूसरी शताब्दी में लिखने के लिए ताड़पत्रों और चौथी शताब्दी में भोजपत्रों का प्रयोग होता था। लेखन-विधि, लिपिविद्या और लेखन-साम्रगी आदि सभी साधनों के होते हुए भी आगम क्यों नहीं लिखे गए, इसका प्रमुख कारण यह था कि श्रमण अपने हाथ से पुस्तक नहीं लिख सकते थे और न ही लिखी पुस्तकें साथ में रख सकते थे। इसमें निम्न दोषों की सम्भावना थी
(१) अक्षर आदि लिखने से तथा ताड़पत्रों एवं कागज में कुंथु आदि सूक्ष्म जीवों की हिंसा होती है, इसलिए पुस्तक लिखना संयम-विराधना का कारण है।
(२) तीर्थंकरों ने पुस्तक नामक उपधि रखने की आज्ञा नही दी है।
(३) पुस्तकें पास में रखने से स्वाध्याय में प्रमाद आता है।
(४) बृहत्कल्पभाष्य (उ. ३ गाथा ३८३१ ) के अनुसार साधु जितनी बार पुस्तक खोलते-बाँधते और अक्षर लिखते हैं उन्हें उतने ही चतुर्लघुकों का प्रायश्चित्त आता है और आज्ञा
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