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पर यह बालक क्यों रोया ? मंत्रियों ने उत्तर दिया--स्वामिन यह अल्पवयस्क बालक मातापिता विहीन है, अतः निराश्रय हो जाने के कारण रुदन कर रहा है । राजा ने बड़े प्रेमभाव से पूछा--कुमार महेन्द्र बताओ क्यों रो रहे हो ?
महेन्द्र--आपकी गोद में आने पर मैंने सोचा--इन्द्र और विष्णु के समान पराक्रमशाली राजा का पुत्र होने पर भी मुझे शत्रु की गोद में जाना पड़ रहा है । इसी बात को चिन्ता के कारण मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े हैं।
राजा दृढ़वर्मा ने कहा--कुमार महेन्द्र बड़ा बुद्धिमान प्रतीत होता है । इस छोटी-सी पायु में इतनी अधिक चतुराई है। __ मंत्रियों ने कहा--प्रभो ! जिस प्रकार धुंधची के समान एक छोटा-सा अग्निकण भी बड़े-बड़े नगर और गाँवों को जलाकर भस्म कर देता है, उसी प्रकार तेजस्वियों के पुत्र लघुवयस्क होने पर भी तेजस्वी ही होते हैं। क्या सर्प का छोटा-सा बच्चा विषैला नहीं होता? . राजा ने कुमार महेन्द्र को सान्त्वना देते हुए कहा--कुमार मैं तुम्हें अपना पुत्र मानता हूं । तुम निर्भय होकर रहो । यह राज्य अब तुम्हारा है । यह कहकर अपने गले का रत्नहार उसे पहना दिया।
इसी समय अन्तःपुर से महत्तरिका प्राई और उसने राजा के दाहिने कान में कुछ कहा । राजा कुछ समय के उपरान्त प्रियंग श्यामा के वास भवन में गया । पुत्र न होने
दास पाकर उसने अनेक प्रकार से समझाया। मंत्रियों के परामर्शानसार उसने राज्यश्री भगवती की उपासना की और देवी ने उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया।
प्रियंगुश्यामा ने रात्रि के अन्तिम प्रहर में स्वप्न में ज्योत्स्ना परिपूर्ण निष्कलंक पूर्ण चन्द्र को कुवलयमाला से आच्छादित देखा। प्रातःकाल होने पर राजा ने दैवज्ञ को बुलाकर उस स्वप्न का फल पूछा । दैवज्ञ ने स्वप्न-शास्त्र के आधार पर कहा--चन्द्रमा के स्वप्न दर्शन से रानी को अत्यन्त सुन्दर पुत्र उत्पन्न होगा। कुवलयमाला से प्राच्छादित रहने के कारण इसकी प्रियतमा कुवलयमाला होगी।
समय पाकर रानी ने पुत्र प्रसव किया और पुत्र का नाम कुवलयचन्द्र रखा गया । श्रीदेवी के आशीर्वाद से उत्पन्न होने के कारण इस कुमार का दूसरा नाम श्रीदत्त भी था। कुमार कुवलयचन्द्र को विद्यारंभ कराया गया। थोड़े ही समय में इसने सभी विद्याओं
कलाओं में प्रवीणता प्राप्त कर ली। एक दिन समद्र कल्लोल नामका अश्व कुमार कुवलयचन्द्र को भगाकर जंगल की ओर ले चला, मार्ग में अचानक ही किसी ने अदृश्यरूप में घोड़े पर छ री का प्रहार किया। घोड़ा भूमि पर ढेर हो गया । कुमार कुवलयचन्द्र सोचने लगा--घोड़ा मुझे क्यों भगाकर लाया और किसने इस पर प्रहार किया है ? इसी समय आकाशवाणी हुई कि दक्षिण दिशा की ओर जाइये, वहां आपको अपूर्व वस्तु दिखलाई पड़ेगी।
आकाशवाणी के अनुसार प्राश्चर्यचकित कुमार दक्षिण दिशा की ओर चला तो उसे घोर विन्ध्याटवी मिली। थोड़ी दूर और चलने के बाद इस अटवी में उसे एक विशाल वटवृक्ष दिखलायी पड़ा। इस वृक्ष के नीचे एक साधु ध्यानमग्न था और साधु के दाहिनी ओर एक सिंह बैठा हुआ था, जो अत्यन्त शांत और गंभीर था । मुनि ने गंभीर शब्दों में कुमार का स्वागत किया । कुमार ने अश्वापहरण और प्राकाशवाणी का रहस्य मुनि से पूछा । मुनिराज कहने लगे--
वत्सनाम के देश में कौशाम्बी नाम की सुन्दर नगरी है । इसमें पुरन्दरदत्त नामका राजा शासन करता था। इसका वासव नाम का प्रधान मंत्री था । एक दिन उद्यानपाल
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