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हरिभद्र के शिष्य उद्योतन सूरि ने समराइच्चकहा के स्थापत्य के आधार पर कुवलयमाला जैसी सर्वोत्कृष्ट रचना लिखी है । इसमें सन्देह नहीं कि उद्योतन सूरि की यह कृति अनुपम है। कला की दृष्टि से इसकी समकक्षता करने वाली प्राकृत में तो कोई रचना नहीं ही है, संस्कृत में किन्हीं बातों के आधार पर कादम्बरी को इसकी तुलना में उपस्थित किया जा सकता है, पर सभी दृष्टियों से कादम्बरी भी इसके समकक्ष नहीं ठहर सकती है । अतः यह मानने के लिए बाध्य होना पड़ता है कि जिस प्रकार हरिभद्र ने मध्यकालीन विघटित समाज को सुगठित करने के लिए प्रयास किया और दलित-पतित समाज के सदस्यों का उच्च चरित्रांकन कर समाज को स्वस्थ वातावरण प्रदान किया, उसी प्रकार साहित्य के क्षेत्र में भी हरिभद्र ने अपनी कृतियों के द्वारा एक नया मार्ग स्थापित किया है।
हरिभद्र की प्रतिभा बहुमुखी है । दर्शन, योग और अध्यात्म चिन्तन के द्वार। इन्होंने कथाकृतियों में सभी विषयों का समावेश किया है। इसी कारण इनको समरा इच्चकहा धर्मकथा होने पर भी पंचामृत बन गयी है। इसका रसास्वाद अद्भुत है। कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, द्रव्य, गुण तत्त्व, धर्मोपदेश प्रभति के साथ कथारस वर्तमान वातावरण को अधिकाधिक मुखरित कर घटनाओं के संयोग घटित किये गये है। कथा का विकास विरोध और द्वन्द्वों के बीच होता है । कुतूहल और जिज्ञासा सर्वत्र अपना अस्तित्व बनाये रखती है। जीवन की प्रान्तरिक भावनाओं का विश्लेषण उत्तरोत्तर होता जाता है। भावात्मक संवादों के द्वारा कथा का विस्तार भार हल्का होता जाता है और आन्तरिक भावनाओं का उद्घाटन यथास्थान होता चलता है । दैनिक और पारिवारिक जीवन की सहज और सामान्य अनभतियों के मामिक चित्रण में इनकी विशेष पटुता दिखलायी पड़ती है। यद्यपि समराइच्चकहा में इतिवृत्त समगति से आद्यन्त चलता है, विशेष उतार-चढ़ाव का अवसर बहुत कम स्थानों पर आ पाया है, तो भी विदग्धतापूर्ण स्थलों की कमी नहीं मानी जा सकती है।
धर्ताख्यान तो अपने ढंग का अद्भुत कथाकाव्य है । इस कृति द्वारा भारतीय साहित्य में एक नयी शैली की स्थापना हुई है। इसमें मनोरंजन और कुतूहल के साथ जीवन को स्वस्थ बनाने वाली सामग्री भी वर्तमान है ।
हरिभद्र की लघु कथानों में दृष्टान्त या उपदेश कथाएं आती है। इस श्रेणी की कथाओं के सभी पात्र प्रायः मुनष्य ही होते हैं और घटनाओं में किसी उपदेश या सिद्धान्त का समर्थन रहता है। दृष्टान्त कथाओं में कुछ स्थलों पर मनुष्य तर पात्र भी पाते हैं। इन कथाओं में यों तो सभी कथा के तत्त्व हीनाधिक रूप में पाये जाते हैं, पर प्रधानता दो तत्वों की रहती है--घटना और उद्देश्य । हरिभद्र का मख्य कौशल यह है कि उन्होंने इन कथाओं को इस प्रकार उपस्थित किया है, जिससे पाठक या श्रोताओं के मन में कौतूहल बना रहता है । कौतूहल संवर्धनाथ नायक और नायिका के जीवन के मर्मस्थलों का चित्रण कर पाठक के हृदय में सहानुभूति जाग्रत की है। किसी प्राध्यात्मिक, सैद्धान्तिक या नैतिक व्याख्या के स्पष्टीकरण के लिए प्रायी हुई कथा में कोई-न-कोई संवेदना अवश्य रहेगी।
हरिभद्र की इन दृष्टान्त कथाओं में कथावस्तु का स्थान मुख्य है। कथावस्तु की उत्पत्ति अनुभूतियों और लक्षणात्मक प्रवृत्तियों से हुई है और अनुभूतियां घटनाओं तथा कार्यव्यापारों की श्रृंखला से निर्मित है। कथानकों म यत्र-तत्र मनोवैज्ञानिक सत्यता और अन्तर्द्वन्द्व भी पाये जाते है। घटना, चरित्र और भाव ये तीनों रूप कथावस्तु के पाये जाते हैं। घटना प्रधान कथावस्तु म घटना अथवा काय-व्यापार की श्रृंखला
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