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________________ ३६५ - (४९) विद्यागत--शास्त्र ज्ञान प्राप्त करना । (५०) मन्त्रगत--दैहिक, दैविक और भौतिक बाधाओं को दूर करने के लिये मन्त्रविधि का परिज्ञान । (५१) रहस्यगत--एकान्त की समस्त बातों की जानकारी अथवा जादू-टोने और टोटकों की जानकारी इस कला के अन्तर्गत मानी जाती है। (५२) संभव--प्रसूति विज्ञान। (५३) चार--तेज गमन करने की कला।। (५४) प्रतिचार--रोगी की सेवा-सुश्रुषा करने की कला। (५५) व्यूह--युद्ध के समान व्यूह रचना की कला। युद्ध करते समय से ना को कई विभागों में विभक्त कर दर्ल ध्य भाग में स्थापित करने की कला । (५६) प्रतिव्यूह--शत्रु के द्वारा व्यूह रचना करने पर उसके प्रत्युत्तर में व्यूह रचने की कला। (५७) स्कन्धवारमानम्--स्कन्धावार--छावनी के प्रमाण--लम्बाई, चौड़ाई एवं अन्य विषयक मान की जानकारी इस कला में शामिल है। (५८) नगरमान--नगर का प्रमाण जानने की कला। (५९) वास्तुयान-भवन, प्रासाद और गृह के प्रमाण को जानने की कला । (६०) स्कन्धावार निवेशनम्--छावनियां कहां डाली जानी चाहिए, उनको रचना कैसे करनी चाहिये। उनकी रसद का प्रबन्ध कहां, कैसे और कितना करके रखना चाहिये। शत्रु से कैसे सुरक्षित रहा जा सकता है, इत्यादि बातों का ज्ञान इस कला के द्वारा किया जा सकता है। (६१) नगरनिवेश--नगर बसाने की कला। (६२) वास्तुनिवेश--भवन, प्रासाद और घर बनवाने की कला । (६३) इष्वस्त्र--बाण प्रयोग करने की कला। (६४) तत्त्व प्रवाद--तत्त्वज्ञान की शिक्षा । (६५) अश्वशिक्षा--अश्व को शिक्षा देने की कला--नाना प्रकार की चालें सिखलाना। (६६) हस्तिशिक्षा--हाथी को शिक्षित करने की कला अर्थात् हाथी को युद्ध करना सिखलाना, रणभूमि में विशेष रूप से संचालन की शिक्षा देना आदि । (६७) मणिशिक्षा--मणियों को सुन्दर और सचिवकण बनाने की कला । (६८) धनुर्वेद--धनुष चलाने की विशेष कला । (६९) हिरण्यवाद--चांदी के विविध प्रयोग और रूपों को जानने की कला । (७०) सुवर्णवाद--सोने के विविध प्रयोग और उसको पहचानने की कला। (७१) मणिवाद---मणियों के विविध प्रयोगों की जानकारी। (७२) धातुवाद--धातुओं को खरा-खोटा पहचानने की कला । (७३) बाहुयुद्ध--बाहुयुद्ध को कला, इस कला का दूसरा नाम मल्लयुद्ध भी है। (७४) दण्डयुद्ध--लाठी चलाने की कला । (७५) मुष्टियुद्ध--मुक्का या धूंसा मारने की कला । (७६) अस्थियुद्ध--हड्डियों को लड़ाने की कला । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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