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कि प्राचीन काल में इन पन्द्रह कार्यों के द्वारा साधारणतः आजीविका सम्पन्न की जाती थी और जंनाचार्य इन कामों को निषिद्ध समझते थे । जैनागम साहित्य में भी इन खर कर्मों का निर्देश मिलता है ।
( १ ) इंगालकम्म -- कोयला, ईंट आदि बनाने की जीविका ।
(२) वणकम्म -- -- वृक्षों को काटकर बेचना ।
( ३ ) सागडिकम्म -- गाड़ी आदि बनाकर अथवा गाड़ी जोतकर जीविका चलाना ।
(४) भाडियकम्म -- गाड़ी, घोड़े, खच्चर, बैल, आदि से बोझा ढोकर आजीविका
करना ।
(५) फोडियकम्म -- वासन ( बर्त्तन), आदि बनाकर बेचना । (६) दन्तवाणिज्ज - - हाथी दांत, आदि का व्यापार करना । ( ७ ) लक्खवाणिज्ज -- लाख, आदि का व्यापार करना । (८) के सवाणिज्ज - - केशों का व्यापार करना ।
( ९ ) रसवाणिज्य - - मक्खन, मधु, आदि का व्यापार करना । (१०) विषवाणिज्ज - विषादि प्राणघातक पदार्थों का व्यापार | (११) जन्तपीलणकम्म -- कोल्ह ू, मिल, आदि चलाने का कार्य । (१२) निल्लंछणकम्म -- शरीर के अंग छेदन का कार्य, जैसे बैल की नाक छेदना, बधिया बनाना, आदि ।
(१३) दवग्गिदावणय-वन, आदि जलाने के लिये अग्नि लगाना या लगवाना । (१४) असइपोषणं -- बिल्ली, कुत्ता पालना या दास-दासी पालकर भाड़े से आमदनी
करना ।
(१५) सर - दह-तलायस्सोसणय - - तालाब, द्रह आदि के सुखाने का कार्य । समुद्र यात्रा और वाणिज्य
समराइच्चकहा में ऐसे कई पात्र आये हैं जो समुद्र यात्रा द्वारा धनार्जन करते हुए दिखलायी पड़ते हैं । ये व्यापार के निमित्त बड़े-बड़े जहाजी बेड़े चलाते थे और सिंहल, सुवर्णद्वीप, रत्नद्वीप आदि से धनार्जन कर लौटते थे।
धन ने स्वोपार्जित वित्त द्वारा दान करने के निमित्त समुद्रपार व्यापार करने का निश्चय किया और वह अपनी पत्नी धनश्री और भृत्य नन्द को भी साथ लेकर "नाणापयार मण्डजायं " (स० पृ० २४० ) अनेक प्रकार का सामान जहाज में लादकर अपने साथियों के साथ चला | मार्ग में उसकी पत्नी धनश्री ने उसे विष दिया । अपने जीवन से निराश होकर उसने अपना माल मता नन्द को सुपुर्द कर दिया । कुछ दिनों के बाद जहाज महाकटाह पहुँचा और नन्द सौगात लेकर राजा से मिला । यहां नन्द ने पाल उतरवाया और धन की दवा का भी प्रबन्ध किया, पर उससे कोई लाभ न हुआ । यहां का माल खरीदा गया और जहाज पर लादकर जहाज को आगे बढ़ाया ।
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पंचम भाव की कथा में सनत्कुमार और वसुभूति सार्थवाह समुद्रदत्त के साथ ताम्रलिप्त से व्यापार के लिये चले । जहाज दो महीने में सुवर्णभूमि पहुंच गया । सुवर्णभूमि से सिंहल के लिए रवाना हुए। तेरह दिन चलने के बाद एक बड़ा भारी तूफान उठा और जहाज काबू से बाहर हो गया 1
१- स० पृ० २४० -- चतुर्थभव की कथा |
२ -- पंचम भव की समस्त कथा, पृ० ३९८ ।
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