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(४४) वैराटनगर'--यह मस्स्य प्रदेश की राजधानी था। महाभारत में इसका जिक माया है, यहां पाण्डवों ने गुप्तवास किया था। आधुनिक धौलपुर, भरतपुर और जयपुर का सम्मिलित भूभाग वैराट देश कहलाता था और वैराटनगर सम्भवतः भरतपुर रहा होगा।
(४५) शंखपुर-हरिभा ने उत्तरापथ में इस नगर की अवस्थिति मानी है। विविध तीर्थकल्प में बताया गया है कि राजगह से जरासन्ध की सेना और · द्वारिकावती से श्रीकृष्ण को सेना युद्ध के लिये चली । मार्ग में जहां ये दोनों सेनाएं मिलीं, वहाँ अरिष्ट नेमि ने शंखध्वनि की और शंखपुर नाम का नगर बसाया।
(४६) शंखवर्धन'-हरिभद्र के अनुसार भरत क्षेत्र में शंखवर्द्धन नगर की स्थिति है। इस नगर की सौराष्ट्र में स्थिति रही होगी।
(४७) श्वेतविका-यह केकयाई देश की प्राचीन राजधानी है। यह श्रावस्ती के
पूर्व में नेपाल की तराई में अवस्थित था। श्वतविका से गंगा नदी पारकर महावीर सुरभिपुर पहुंचे थे। बौद्ध ग्रन्थों में श्वेतविका को सेतव्या कहा गया है।
(४८) श्रावस्ती'--श्रावस्ती कुणाल या उत्तर कोसल देश की मुख्य नगरी थी, जो प्रचिरावती (राप्ती नदी के किनारे प्रवस्थित थी। जैन और बौद्ध साहित्य में श्रावस्ती का बहुत विस्तृत वर्णन है । श्रावस्ती में चार दरवाजे थे, जो उत्तरद्वार, पूर्वद्वार, दक्षिणद्वार तथा पश्चिमद्वार के नाम से पुकारे जाते थे । श्रावस्ती में पार्श्वनाथ के अनुयायी केशी मुनि तथा महावीर के अनुयायी गौतम स्वामी के महत्वपूर्ण संवाद होने का उल्लेख जैन ग्रन्थों में आता है। आजकल श्रावस्ती के चारों ओर घना जंगल है। यह गोंडा जिलान्तर्गत सहेट-महेट स्थान है।
(४६) श्रीपुर--विविध तीर्थकल्प के अनुसार श्रीपुर में अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की गयी है । श्रीपुर का निर्माण माली सुमालि ने किया है।
(५०) साकेत'--अयोध्या का दूसरा नाम साकेत है। (५१) सुशर्मनगर---इस नगर की स्थिति गुजरात में कहीं होनी चाहिये।
(५२) हस्तिनापुर'--यह नगर कुरुदेश की राजधानी था। यह जनों का पवित्र तीर्थ माना जाता है। किंवदन्ती है कि इसे हास्तिन नाम के राजा ने बसाया था: यह वर्तमान में गंगा के दक्षिण तट पर, मेरठ से २२ मील दूर उत्तर-पश्चिम कोण में और दिल्ली से ५६ मील दक्षिण-पूर्व खंडहरों के रूप में वर्तमान है।
(५३) क्षिति प्रतिष्ठित"--यह राजगृह का दूसरा नाम है। जैन साहित्य में राजगृह को क्षिति-प्रतिष्ठित, चणकपुर, ऋषभपुर तथा कुशाग्रपुर नाम से भी अभिहित किया गया है । जैन साहित्य के अनुसार राजगृह में गुणसिल, मंडिकुच्छ, मोग्गरपाणि अादि अनेक
१--स०, पृ० ३८५। २ .- वही, पृ० ७३७ । ३--वही, पृ० ६७३ । ४--वही, पृ. ३६५-३६६ । ५--वही, पृ० २८३ । ६-वही, पृ० ३९८-३६६ । ७--वही, पृ० ३२६ । ८-- वही, पृ० २३४ । ६-वही, पृ० १२७, १७५ । १०--वही, पृ० ६७१, ६ ।
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