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(२५) पाटलिपुत्र ' - गंगा के तट पर अवस्थित बहुत प्रसिद्ध पुराना नगर हैं । जैन साहित्य में बताया गया है कि कुणिक के परलोक गमन के उपरान्त उसका पुत्र उदात्री चम्पा का शासक नियुक्त हुआ । वह अपने पिता के सभास्थान, क्रीड़ा-स्थल, शयन स्थान आदि को देखकर, पूर्व स्मृति जाग्रत हो जाने से उद्विग्न रहता था । इसके प्रधान श्रमात्यों की अनुमति से नूतन नगर निर्माणार्थ प्रवीण नैमित्तिकों को श्रादेश दिया। भ्रमण करते
गंगा तट पर ये । गुलाबी पुष्पों से सुसज्जित छवियुक्त पाटलिवृक्षों को देखकर व आश्चर्य चकित हुए । तरु की टहनी पर चाष नामक पक्षी मुंह खोले बैठा था । कीड़े स्वयं उसके मुंह में श्रा पड़ते थे । इस घटना को देखकर वे लोग सोचने लगे कि यहां पर नगर का निर्माण होने से राजा को लक्ष्मी की प्राप्ति होगी। फलतः उस स्थान पर नगर का निर्माण कराया, जिसका नाम पाटलिपुत्र रखा गया । वर्तमान में यह नगर पटना के नाम से प्रसिद्ध है और बिहार की राजधानी है । संस्कृत साहित्य में पाटलिपुत्र बहुत प्रिय नगर रहा है ।
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(२६) पुंडूवर्धन' - 1 - - इस नगर की स्थिति बंगाल के मालदा जिले में है । कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी इस नगर का नाम श्राया हैं तथा इसे हरिभद्र के समान पुंड्र नाम का एक जनपद भी बतलाया है । वर्तमान बोगरा जिले का महास्थानगढ़ नामक ग्राम पुंड्र जनपद में था । कनिधम ने इस नगर की समता महास्थानगढ़ से की है, यह वर्धन कुटी से १२ मील पश्चिम हैं । महाभारत ( सभापर्व ७८, ६३) में आया है कि पुंड्र के राजा दुकूल आदि लेकर महाराज युधिष्ठिर के राजस्य यज्ञ में उपस्थित हुए थे । कौटिल्य के अर्थशास्त्र ( श्र० ३२) में लिखा है कि पुंड्र देश का वस्त्र श्याम और मणि के समान स्निग्ध वर्ण का होता था । हरिभद्र ने इसे श्रमरावती के समान बताया है ।
(२७) ब्रह्मपुर - पूर्व दिशा में वर्तमान श्रासाम में इस नगर की स्थिति थी ।
( २८ ) भंभानगर ' -- हरिभद्र ने विजय के अन्तर्गत इस नगर की स्थिति मानी है । हमारा अनुमान है कि यह नगर प्रासाम में कहीं अवस्थित था ।
(२६) मदनपुर -- हरिभद्र ने इसकी स्थिति कामरूप -- श्रासाम में मानी है ।
(३०) महासर - यह वर्त्तमान में महेश्वर नाम का स्थान है, जो इन्दौर से ४० मील दक्षिण नर्मदा के तट पर अवस्थित है ।
(३१) माकन्दी - इस नगर की स्थिति हस्तिनापुर के प्रास-पास रही होगी ।
महाभारत (भा० ५/७२ - - ७६ ) में बताया गया है कि युधिष्ठिर ने दुर्योधन से पांच सौ गांव मांगे थे, उनमें एक माकन्दी भी था ।
(३२) मिथिला' -- मिथिला विदेह ( तिरहुत) की प्रधान नगरी थी । हरिभद्र ने इसकी प्रशंसा की हैं । जैन साहित्य में बताया गया है कि यहां बहुत-से कदली वन तथा मीठे पानी की बावड़ियां, कुएं, तालाब और नदियां मौजूद थीं। यहां बाणगंगा और
१- वही, पृ० ३३६ ।
२ - वि० ती० क०, पृ० ६७ +
३- - स० पृ० २७५ । ४- वही, पृ० ९५६ । ५ - - वही, पृ० ८०५ । ६ - वही, पृ० ६०४ ।
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३ --- वही, पृ० ५०८ । - वही, पृ० ४९३ । -- वही, पृ० ७८१ ।
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