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उत्तर सीमा तक व्याप्त है। पूर्वी और पश्चिमी घाट पर्वतमाला इसके दोनों पार्श्व है और नीलगिरि का शिखर इसका त्रिकोण-चडान्त है। गुजरात और मालवा के बीच से यह पर्वत धीरपद से मध्य भारत को पार करके गांगेय उपत्यका तक फैला हुआ है ।
मलय :--पुराण प्रसिद्ध सात कुलाचलों में से यह एक प्रसिद्ध पर्वत है। यहां चन्दन अधिक होता है। यह पश्चिमी घाट का वह भाग है, जो मैसूर के दक्षिण और त्रावणकोर के पूर्व में है । कुछ विद्वान् नीलगिरि को ही मलय पर्वत मानते हैं । __ लक्ष्मीपर्वत--यह आसाम के अन्तर्गत एक पहाड़ी है। आसाम में पश्चिम को छोड़ शेष तीनों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ हैं । दक्षिणवाला पहाड़ी भाग लक्ष्मी पर्वत के नाम से प्रसिद्ध था। इस पहाड़ से कोयला, लोहा और चूना बनाने का कंकड़ निकलता है। मिट्टी का तेल भी निकलता है।
वैताढ्य :--इसका दूसरा नाम विजया भी है। यह छः खण्डों के मध्य में है, इसीलिए विजया कहलाता है। विजया की दो गुफाओं से दो नदियां निलकती है, जिससे भरतादि क्षेत्रों के छः खण्ड हो गये हैं। वैताढ्य की दो श्रेणियां है--उत्तर
और दक्षिण । उत्तर श्रेणी में ६० विद्याधर नगर और दक्षिण में ५० हैं । ___ सुसुमार --विजया की उत्तर श्रेणी के नगरों में विजयपुर एक नगर है। इस नगर के पास संसुमार नाम का अरण्य था और इसी अरण्य में सुंसुमार नाम का पर्वत था । वर्तमान में यह मिर्जापुर जिले में चुनार के निकट एक पहाड़ी है। कुछ विद्वान् संसूमार को भर्ग देश की राजधानी बताते हैं।
सिलिन्ध-निलय'--यह छोटी-सी पहाड़ी है । यहां पर नाना वृक्षों का घना जंगल तथा इस जंगल में व्याघ्र और सिंह भी वर्तमान थे। साथ ही इस जंगल में भयंकर अजगर भी निवास करते थे। इस वर्णन से एसा ज्ञात होता है कि यह आसाम की दक्षिण पहाड़ी है । (इ) नदियां
नदियों के नामों में सिन्धु और कुछ पर्वतीय नदियों का वर्णन पाया है । सिन्ध भारत के उत्तरी भाग में सिन्ध नाम से प्रसिद्ध है । इसे अंग्रेजी में इण्डस् कहा जाता है। इसकी कई शाखाएं अनेक नामों से प्रसिद्ध है। महाभारत काल में सिन्धु नाम का महाजनपद था। इसके अन्तर्गत दस राष्ट्र शामिल थे। पहाड़ी नदियों के नाम नहीं आये हैं, पर वर्णन से ऐसा ज्ञात होता है कि इनमें कुछ आसाम की पर्वतीय नदियां हैं और कुछ विन्ध्यगिरि से निकलने वाली पहाड़ी झरनों के रूप में वर्णित है।
(ई) बन्दरगाह
प्राचीन भारत में भी बड़े-बड़े जहाजी बड़े चलते थे तथा बड़े-बड़े बन्दरगाह भी थे। समराइच्चकहा में दो प्रधान बन्दरगाहों का उल्लेख मिलता है, जहां
१---अत्थि इहेव मलयपव्वए मणोरहापूरयं नाम सिहरं । स०, पृ० ४३८ । २-प्रारूढा लच्छिपव्वयं, वही पृ० १५२ ।। ३--भारहेवासे वेयड़ढो नाम पव्वरो, वही, पृ० ४११ । ४--विजए सुंसुमारे रणे सुंसुमार गिरिम्मि, वही, पृ० १०७ । ५--सिलिन्धनिलयं नाम पव्वयंमि सं० १० १२५ । ६--सिन्धुनईपुलिणे परिवहन्ते पयाणए स० पृ० १४८ ।
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