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हरिभद्र की दृष्टि में आक्षेप या निन्दा करने की अपेक्षा व्यंग्य एक ऐसा साधन हैं, जो बिना किसी हानि के दोषो के दोषों का परिमार्जन करता है । इसका कारण यह है कि मनुष्य अपनी हंसी सहन नहीं करता है, अतः जिन दोषों के कारण दूसरे लोग हंसते हैं, उन दोषों का वह परिमार्जन करना चाहता है ; सौन्दर्य भाव क माध्यम से उपहास के निमित्त जब सामयिक दोष या जड़ता की कल्पनात्मक विवेचना को नियमानुकूल एक प्राकार प्राप्त होता है, तब व्यंग्य कला का रूप धारण करता है । व्यंग्य का सबसे अधिक वैभव साहित्य में पाया जाता है । व्यंग्य मूलतः दो प्रकार का हैं. -- सरल और वक्र | सरल या सीधे रूप में व्यंग्य का प्रयोग करने वाला लेखक उपदेशक से कुछ ही आगे रहता है । जब कोई लेखक वक्र व्यंग्य का प्रयोग करता है तब लेखक अपने आक्रमण के विषय को एक ऐसी हास्यास्पद स्थिति में ला पटकता है, जहां अपराधी के अपराध का परिमार्जन संभव होता है । व्यंग्य उसी यग में अधिक सफल हो सकता है, जिसमें नैतिकता और शिष्टाचार के प्रति जनता में पर्याप्त जागरूकता रहती हूँ । यह सत्य है कि काव्य में व्यंग्य रहने से उसकी आत्मा का विस्तार होता हँ ।
हरिभद्र ने धूर्त्ताख्यान में वक्र व्यंग्य की सुन्दर योजना की हैं। पुराणों की असंभव और प्रबुद्धिगम्य बातों का निराकरण करने के लिये उन्होंने धूर्त गोष्ठी का प्रायोजन किया है । इस गोष्ठी में मूलदेव, कंडरीक, एलाषाढ और शश इन चार पुरुषों के अतिरिक्त खंडपाना नाम की महिला भी सम्मिलित है । इतना ही नहीं, इनमें से प्रत्येक के पांच-पांच सौ श्रनुचर भी हैं । वर्षाकाल में एक दिन वे उज्जैनी नगरी के बाहर उद्यान में जाकर गप्प छेड़ते हैं । सबसे पहले मूलदेव अपने अनुभव सुनाता है और दूसरे लोग उसके कथन की प्राचीन प्राख्यानों द्वारा पुष्टि करते हैं । इस श्राख्यान द्वारा हरिभद्र ने निम्न प्रसंगों पर व्यंग्य किया है :--
(१) ब्रह्मा के मुख, भुजा, जंघा और पैरों से सृष्टि की उत्पत्ति सम्बन्धी मान्यता । (२) प्राकृतिक दृष्टि से कल्पित किये गये जन्मों की मान्यता ।
(३) शिव का जटाओं में एक हजार दिव्य वर्ष तक गंगा का धारण करना । (४) ऋषियों और देवताओं के असंभव और विकृत रूप की मान्यता ।
इसी प्रकार द्वितीय प्राख्यान में -
(१) अण्डे से सृष्टि उत्पत्ति की मान्यता ।
(२) अखिल विश्व का देवों के मुख में निवास ।
(३) द्रौपदी के स्वयंवर के अवसर पर एक ही धनुष में पर्वत, सर्प, श्रग्नि आदि का समारोप |
( ४ ) जटायु, हनुमान आदि के जन्म की असंभव और मिथ्या मान्यतायें । तृतीय आख्यान में --
(१) जमदग्नि और परशुराम सम्बन्धी अविश्वसनीय मान्यताएं । (२) जरासन्ध के स्वरूप की मिथ्या कल्पना ।
(३) हनुमान द्वारा सूर्य का भक्षण करना ।
( ४ ) स्कन्द की उत्पत्ति सम्बन्धी सम्भव कल्पना । (५) राहु द्वारा चन्द्रग्रहण की विकृत कल्पना । (६) वामनावतार और वराहावतार की मान्यताएं ।
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