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कोहो, मद्दवं पि माणो, अज्जवं पि माया, संतोसो वि लोहो, सच्चं पि श्रलियं, पियं पि फरसं, कलत्तं पिवे रियो ति । स०पू० ५२२ ।
इस गद्यांश में भाग्य या विधि की विपरीतता स्वरूप सामान्य का समर्थन अप्रस्तुतों द्वारा किया गया है । भाग्य के विपरीत होने पर अमृत भी विष हो जाता है, रस्सी भी सर्प बन जाती है, गोष्पद भी समुद्र हो जाता है, अणु गिरि बन जाता है, मूषक विवर रसातल, सुजन भी दुर्जन, पुत्र भी शत्रु हो जाता है ।
२२ -- संसृष्टि ।
तिल- तण्डुल न्याय से परस्पर निरपेक्ष अनेक अलंकारों की एकत्र स्थिति में संसृष्टि अलंकार होता है । इस अलंकार का प्रयोग समराइच्चकहा में अनेक स्थलों पर हुआ है ।
(१) काल यमीसचन्दणरसेण निम्मज्जियं च मुहकमलं । दइयो व्व सारा कम्रो य से समयणो प्रहरो || स० पृ० ६४ ।
इस पद्य में " मुहकमलं" में रूपक, "दइग्रोव्व" में उपमा और "साणुराम्रो" में श्लेष है । अतः यहां संसृष्टि अलंकार है ।
(२) जीए महुमत्तकामिणी लोलाचंकमण णेउररवेण ।
भवणवणदीहि यररया वि हंसा नडिज्जन्ति ॥
इस पद्य में " महमत्तं" में श्लेष तथा नूपुररव द्वारा हंसों का व्याकुलित किया जाना उत्प्रेक्षा है । श्रतः संसृष्टि है ।
श्रृंखला अलंकार के सभी उदाहरण संसृष्टि अलंकार के हैं । " ग्रह निष्णासिय तिमिरो ( पृ० ७५१ ) में उत्प्रेक्षा और रूपक का मिश्रण होने से संसृष्टि है ।
इस प्रकार हरिभद्र ने अलंकार योजना द्वारा अपनी कला को चमत्कृत किया है । भावों को उदात्त और भाषा को शक्तिशालिनी बनाने में भी इन अलंकारों का प्रयोग किया गया है ।
बिम्ब विधान --
मानव जीवन में बिम्ब विधान अथवा कल्पना का बड़ा महत्त्व है । प्रस्तुत परिवेश के संवेदनों और प्रत्यक्ष के अतिरिक्त उसके मानस में अतीत की, तथा कभी अस्तित्व न रखने वाली, न घटनेवाली वस्तुओं और घटनाओं की असंख्य प्रतिमाएं भी रहती हैं । बिम्ब शब्द इसी मानस प्रतिमा का पर्याय है । काव्यानुभूति की स्थिति बौद्धिक अनुभूति और ऐन्द्रिय अनुभूति की मध्यवर्ती एक पृथक अनुभूति सहज अनुभूति है, जिसका निर्माण बौद्धिक धारणाओं - - कन्सेप्ट्स अथवा इन्द्रिय संवेदनों -- सेन्सेशन्स से न होकर बिम्बों से होता है । प्रातिभज्ञान से ही कलाओं का सम्बन्ध है, यतः प्रातिभज्ञान से बिम्बों की प्राप्ति होती है और तर्कात्मक ज्ञान से कन्सेप्ट की प्राप्ति होती है, अतः उसका काव्य से संबंध नहीं है ।
बिम्ब सर्वदा अभिव्यक्ति ढूंढ़ते हैं, इस स्थिति में आकर बिम्बों को रूपविधान की श्रावश्यकता होती है । कुशल कलाकार रूपविधान का आयोजन कर श्रेष्ठ बिम्बों द्वारा अपने भावों की अभिव्यंजना करता है । बिम्ब विधान की उपयोगिता साधारणीकरण के लिए है । लेखक या कवि के मानस में किसी वस्तु या कार्य की जैसी प्रतिमा निर्मित
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