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(ङ) कर्मसन्तति में पड़े रहने पर भी शुभ कर्म करने की प्रवृत्ति । (च) पुनर्जन्म का विश्वास। ।
(छ) दान, शील, तप और सद्भावना रूप लोकधर्म का प्रचार । धूर्ताख्यान का उद्देश्य स्वस्थ जीवन का निर्माण करना है। देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों के संबंध में जो असंभव और दुर्घट कल्पनाएं पुराणों में पायी जाती है। उनका निराकरण कर यथार्थ रूप की प्रतिष्ठा करना है। दूसरे शब्दों में मिथ्यात्व का निराकरण कर सम्यक्त्व की स्थापना करना है।
टीकाओं में आयी हुई लघुकथाओं का मूलोद्देश्य उदाहरणों द्वारा मूल ग्रन्थ के सैद्धान्तिक विषयों का स्पष्टीकरण करना है। पर तो भी ये कथाएं अपनी सीमा में स्वतन्त्र है तथा इनके द्वारा ब ह्य जगत् और अन्तर्जगत के विभिन्न संबंधों का स्पष्टीकरण बड़ी सरलता से होता है। अतः लौकिक और आध्यात्मिक समस्याओं को सुलझाना ही इनका
उद्देश्य है।
- हरिभद्र सूरि की समस्त प्राकृत कथाएं उद्देश्य की दृष्टि से सफल है। यद्यपि उपदेश और धर्मतत्त्व की प्रचुरता उद्देश्य को प्रत्यक्ष प्रस्तुत कर देती है, तो भी आख्यान का प्रवाह उद्देश्य का गोपन करता चलता है। वास्तविक उद्देश्य समस्त कथा के अध्ययन के अनन्तर ही हाथ लगता है। अतएव उद्देश्य की दृष्टि से हरिभद्र की प्राकृत कथाएं बहुत सफल है।
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