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________________ २८२ ( ८ ) सुन्दरी नायिका की प्राप्ति में बाधक धर्म का परिवर्तन प्राकृत कथाओं की यह सर्वमान्य और प्रचलित रूढ़ि है । इसका प्रयोग पुराण और कथा कोषों में अनेक स्थलों पर मिलता है । नायक किसी सुन्दरी को देखकर मुग्ध हो जाता है, , वह उसके साथ विवाह करना चाहता है । जब याचना के लिए सुन्दरी के पिता के पास जाता है तो पिता यह कहकर इन्कार कर देता है कि में विधर्मी को कन्या नहीं दूंगा । फलतः नायक अपनी कुल परम्परा से चले आये धर्म को छोड़ नायिका के धर्म को धारण कर लेता है । हरिभद्र ने इस कथानक रूढ़ि का व्यवहार अपनी एक लघुकथा में किया है। एक बौद्धधर्मावलम्बी श्रावक पुत्र जिनदत्त की सुन्दरी कन्या सुभद्रा के साथ विवाह करना चाहता है, पर जिनदत्त विधर्मी को कन्या नहीं देना चाहता है । फलतः वह बौद्धधर्म छोड़ जैनधर्म धारण कर लेता है। इस कथानक रूढ़ि द्वारा कथा को चमत्कृत किया गया है तथा यह कथानक रूढ़ि समस्त कथा का आधार भी बन गयी है । ( ९ ) कल्पपादप या प्रियमेलक वृक्ष प्रेमी-प्रेमिकाओं का जो मिलन तीर्थ होता है, उसका कथाओं या काव्यों की दृष्टि से बहुत महत्त्व है । हरिभद्र ने इस तीर्थ को स्मरणीय बनाने के लिए उक्त कथानक रूढ़ि का प्रयोग किया है। सेनकुमार और शांतिमती का वियोग समाप्त होकर वे अज्ञात नाम वाले वृक्ष के निकट मिलते हैं । दीर्घकालीन वियोग के पश्चात् प्रेमी-प्रेमिका का यह मिलन और उनका वह मिलनस्थल दोनों ही चिरस्मरणीय हैं। अतः वे उस अज्ञात वृक्ष को कल्पपादप या प्रियमेलक मानकर उसकी पूजा करते हैं। इस कथानक रूढ़ि द्वारा हरिभद्र ने कथा को एक नयी दिशा की ओर मोड़ा है। कथा को विवाद के मार्ग से हटाकर प्रसन्नता के मार्ग पर गतिशील किया हैं । (१०) नायक को धोखा देकर नायिका का अन्य प्रेमी के साथ अवैध सम्बन्ध इस कथानक रूढ़ि का व्यवहार अधिकांश प्राचीन कथाओं में हुआ है । नायिका किसी कारणवश नायक से घृणा करती हैं और अन्य व्यक्ति से प्रेम करने लगती है । वह अपने प्रेम को स्थायी बनाने के लिए नायक की हत्या भी कर देती है । इस प्रकार कथा का धरातल दूसरी ओर को मुड़ जाता है और कथा दिशा बदल कर दूसरी ओर चलने लगती है । हरिभद्र ने समराइच्चकहा में कई स्थानों पर इस कथारूढ़ि का प्रयोग किया है। नयनावली सुरेन्द्रदत्त राजा को अपनी चाटुकारिता द्वारा विश्वास दिलाती है और कुब्जक के प्रेम में अंधी होकर उस राजा की हत्या कर देती है । धनश्री और लक्ष्मी भी इसी कोटि की नायिका हैं। अपने पतियों को कष्ट देकर अन्य प्रेमियों से प्रेम करती हैं, जिसके फलस्वरूप कथा में तनाव उत्पन्न होता है और कथा आगे बढ़ती है । (११) स्त्री का प्रेम निवेदन और इच्छा पूर्ण न होने पर षड्यंत्र पौराणिक कथाओं में इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग प्रचुरता से हुआ है। हरिभद्र के पात्रों में अनंगवती ने सनत्कुमार के समक्ष इस प्रकार का कुत्सित प्रेम प्रस्ताव रखा है। सनत्कुमार ने ज्ञान का और सन्मार्ग का उपदेश देकर उसे शांत किया है, किंतु पीछे १ --- जिणदत्तस्स सुसावगस्स सुभद्दा नामधूया द०हा०, पृ० ९३ । २ -- तूणमेसो र सो पियमेलओ, कहमन्नहा एवमेयं हवइ -- स०, पृ० ६८८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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