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(३) पट चमत्कार |
(४) गुटिका और अंजन प्रयोग द्वारा अदृश्य होना ।
(५) चमत्कारपूर्ण मणियों के प्रयोग ।
(६) मृतक का जीवित होना ।
(७) विद्या या जादू के प्रयोग द्वारा असंभव कार्य सिद्धि । (८) रूप परिवर्तन |
१ - - औषधि का चमत्कार
औषधियों के चमत्कार सुदीर्घ प्राचीन काल से चले आ रहे हैं । लोकमानस का यह विश्वास है कि औषधियों के प्रयोग से मृतप्राय व्यक्ति जीवित हो जाता है और स्वस्थ व्यक्ति तत्काल मृत्यु प्राप्त कर सकता है । हरिभद्र ने इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग कथा की दिशा को मोड़ने में बड़ी कुशलता से किया है। छठवें भव की कथा में बताया गया है कि धरण ने हेमकुण्डल से इस प्रकार की चमत्कारपूर्ण औषधि प्राप्त की थी, जिस औषधि के प्रयोग द्वारा धड़ से छिन्न व्यक्ति का सिर भी जुट सकता था। इतना ही नहीं, किंतु इस औषधि के लगाते ही बड़ा-सा बड़ा घाव भर सकता था । धरण ने इस औषधि का सबसे पहले उपयोग सिंह द्वारा घायल किये गये कालसेन नामक पल्लीपति को, जो कि मृत्यु की गोद में पहुंच चुका था, बचाने के लिए किया । औषधि के चमत्कार से पल्लीपति तत्काल अच्छा हो जाता है। उसके सभी घाव भर जाते हैं । जादू के प्रयोग के समान वह तत्काल चंगा हो जाता है। इसके अनन्तर इस औषधि का प्रयोग हेमकुण्डल ने स्वर्णद्वीप में व्यन्तरी द्वारा धरण को मृतप्राय बनाये जाने पर किया है । इस प्रसंग में भी मरते हुए धरण की प्राणरक्षा हो गयी है। इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग निम्न कथा तथ्यों की सिद्धि के निमित्त किया गया है
:--
( १ ) कथा को गतिशील बनाने के लिए ।
(२) कथा के प्रवाह को अभीष्ट दिशा में मोड़ने के लिए । (३) आश्चर्य और कुतूहल के सृजन के लिए ।
( ४ ) नायक के चरित्र का उत्कर्ष दिखलाने के लिए ।
( ५ ) इलथ चेतना को जाग्रत करने के लिए ।
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२ - मंत्र शक्तियों का चमत्कार
लोकमानस अनादि काल से आश्चर्ययुक्त शक्तियों पर विश्वास करता चला आ रहा है। वैदिक युग से ही मंत्र का प्रभाव सर्वविदित रहा है। मंत्र प्रधानतः चार प्रकार के माने जाते हैं -- वेदमंत्र, गुरुमंत्र, प्रार्थनामंत्र और चमत्कार - मंत्र | चमत्कार मंत्रों के मारण, मोहन और उच्चाटन ये तीन मुख्य भेद हैं। सातवीं-आठवीं शती में मन्त्र शक्तियों के प्रभाव का बड़ा जोर था । भारत में उस समय तन्त्र-मन्त्र का सम्प्रदाय सब के लिए आकर्षण की वस्तु बना हुआ था। बौद्धों में अनेक तान्त्रिक योगी अपनी सिद्धियां दिखलाकर असाधारण कार्य सम्पन्न करते थे । हरिभद्र के कथासाहित्य में भी इस श्रेणी की कई कथानक रुढ़ियां पायी जाती हैं। पंचम भाव को कथा में आया है कि सनत्कुमार
१- स०, प० ५०७ ।
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