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________________ २५६ (१६) अद्भुत तत्त्व का समावेश -- लोककथाओं में लोक हृदय की अनुभूति ही अधिक रहती है। इनका लेखक व्यक्ति विशेष की भावनाओं का प्रतिनिधित्व न कर समुदाय की भावना का प्रतिनिधित्व करता है। समुदाय के भाव विचारों की कथाओं में निहित करने का ही तात्पर्य है आश्चर्य या अद्भुत तस्व की योजना। अतः समुदाय की भावनाएं व्यक्त करने के लिये कथाकार को कुछ ऐसी घटनाएं या पाख्यान भी निबद्ध करने पड़ते हैं, जो आश्चर्यमण्डित होते हैं। हरिभद्र की प्राकृत कथाओं में तीर्थ कर के केवल ज्ञान के समय प्राश्चर्यजनक बातें घटित होती हुई बतलायी गयी है। तीर्थ करों के जन्म समय के अतिशय , केवलज्ञान के अतिशय, और देवरचित अतिशय अद्भुत और आश्चर्यजनक तत्त्व ही है। जन्म से ही शरीर से पसीना न निकलना, शरीर का सुगन्धित होना, रक्त का श्वेत होना आदि बातें अद्भुत तत्त्व के अन्तर्गत आती हैं। लोक विश्वासों का विस्तार भी इन कथाओं में निहित है। खण्डप्रलय और सृष्टि का क्रम, सुषम-सुषम, सुषम प्रादि कालों की व्याख्याएं और इनमें प्राप्त होने वाले भोगोपभोगों का निरूपण इसी तत्व के अन्तर्गत है। कल्पवृक्षों का वर्णन और उनके कार्यों का निर्देश भी इसी तत्व के अन्तर्गत प्राता है। समराइच्चकहा में नर्मदा और पुरन्दर कथा अद्भुत तत्व से मंडित है। एक नारी का साहसिक कार्य किसे पाश्चर्य में नहीं डालेगा। (१७) हास्यविनोद-- हास्यविनोद से तात्पर्य है काव्यशास्त्र की चर्चा कर अपना मनोविनोद करना। जीवन में विनोद का महत्वपूर्ण स्थान है। विनोद प्राप्त करने के अनेक तरीके थे, जैसे चित्र बनाना, पहेली कहना, समस्या पूत्ति करना एवं शारीरिक क्रियाएं करना, आदि। हरिभद्र ने अपनी कथाओं में हास्यविनोद के तत्वों का पूर्ण मिश्रण किया है। कुछ कथाएं स्वयं ही हास्यविनोद का सृजन करती हैं। प्रादिम मानव कथाओं का उपयोग भी विनोद के लिए ही करता था। (१८) पारिवारिक जीवन-चित्रण-- T लोक-कथाओं का अनिवार्य तत्व है, परिवार का सर्वांगीण चित्रण करना। मानव समाज में जन्म अथवा विवाह के आधार पर कई परिवारों के सदस्य सम्बन्ध और व्यवहार की दृष्टि से एक दूसरे के समीप आ जाते हैं। अतः मानव की समस्त सामाजिक संस्थाओं में परिवार एक प्राधारभूत और सर्वव्यापी सामाजिक संस्था है। संस्कृति के सभी स्तरों में चाहें उन्हें उन्नत कहा जाय या निम्न, किसी न किसी प्रकार का पारिवारिक संगठन अनिवार्यतः पाया जाता है। परिवार का सबसे बड़ा उद्देश्य काम की स्वाभाविक वृत्ति को लक्ष्य में रखकर यौन सम्बन्ध और सन्तान उत्पत्ति की क्रियाओं को नियन्त्रित करना है। यह भावात्मक घनिष्ठता का वातावरण तयार करता है। यह सत्य है कि व्यक्ति के समाजीकरण और संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में परिवार का महत्वपूर्ण स्थान है। हरिभद्र ने अपनी कथाओं में परिवार के विभिन्न चित्र उपस्थित करते हुए परिवार के निम्न सिद्धान्तों का उल्लेख किया है:-- (१) परिवार का प्रारम्भ विवाह के पश्चात् होता है। १--सन०भ०,५०९२०-६२२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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