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मान्यताएँ, रहन-सहन प्रावि का सजीव रूप अंकित है । प्रत: इनकी प्राकृत कवाचों में लोक परम्परा की ऐतिहासिक, सामूहिक विश्वासों की मनोवैज्ञानिक और लोक रंजन की सामाजिक पृष्ठभूमि वर्त्तमान है । इसका सबसे बड़ा प्रबल कारण यह है कि जो भी लेखक जनता के निकट जाने की श्रावश्यकता समझता है, प्रथवा लोक जीवन को किसी प्रकार का धार्मिक, सामाजिक या अन्य किसी प्रकार का उपदेश देना चाहता है, वह अपनी कथाओं को लोकतत्त्वों से अभिमंडित किये बिना रह नहीं सकता है । लोकतत्त्वों के योग से की गयी श्रभिजात साहित्य की रचना लोक संस्कृति का दिग्दर्शन कराने में पूर्ण सक्षम होती हैं । इतिहास केवल राजाओं और महाराजाओं के ऐश्वर्य एवं उनकी जय-पराजय की कहानी कहता है, पर जनता का सच्चा प्रतिनिधि हरिभद्र जैसा कलाकार जनजीवन और उसकी प्राचीन संस्कृति का विवेचन करता है ।
यह सर्वमान्य सत्य है कि प्रबुद्ध साहित्यकार पर समकालीन सामाजिक परिस्थितियों का घना प्रभाव पड़ता है । यह जाने या श्रनजाने रूप में लोकमानस से प्रभावित होकर लोक संस्कृति की विवेचना करता चलता है । हरिभद्र के युग में अंधविश्वास, तन्त्र-मन्त्र, हिंसामयी पूजा, नाना मतवाद एवं श्राध्यात्म सम्बन्धी विभिन्न मान्यताएँ प्रचलित थीं । अतः इन्होंने शास्त्रीय मर्यादाओं से कथानों को मंडित करने पर भी अपनी कथाकृतियों में लोकचेतना एवं लोकसंस्कृति की अनेक छवियां अंकित की हैं ।
लोक साहित्य के मर्मज्ञ विद्वानों ने लोककथा के तत्व और गुणधर्मों के प्राधार पर बतलाया है कि लोककथाओं में निम्न विशेषताओं का पाया जाना श्रावश्यक हैं :--
(१) लोककथाएँ परम्परा द्वारा प्रचलित होती हैं-- यह परम्परा चाहे मौखिक और लिखित हो, चाहे साहित्य द्वारा गृहीत और लिखित हो । (२) इनका देश-काल बहुधा श्राश्चर्यजनक और कल्पना मंडित होता है ।
( ३ ) इनमें अप्राकृतिक, प्रतिप्राकृतिक तथा प्रमानवीय तत्वों का समावेश रहता है' ।
(४) ये लोकरुचि का लोकरंजक चित्रण करती हैं ।
( ५ ) लोकचित्त को आन्दोलित करना, प्रेरित करना और निश्चित उद्देश्य की श्रोर ले जाना ।
(६) लोकभाषा में ही लोकानुश्रुति प्राप्त कथाओं को लिपिबद्ध करना । ( ७ ) ऐतिहासिक, रूढ़िगत और पौराणिक घटनाओं का कल्पना के साथ सम्मि
श्रण |
प्राकृत भाषा
लोककथा के उपर्युक्त मूल्यांकन से स्पष्ट है कि हरिभद्र की समराइच्चकहा जंसी बहुमूल्य प्राकृत कथाकृति में लोककथा के पर्याप्त गुणधर्म विद्यमान हैं । जनभाषा है और हरिभद्र की कथाएं इसी भाषा में निबद्ध हैं, लोकभाषा में लोक परपरा से प्राप्त कथानक सूत्रों को संघटित कर लोकमानस को प्रान्दोलित करने वाली लोकानुरंजक कथाएँ लिखकर हरिभद्र ने लोककथा साहित्य का प्रणयन किया है । विश्ले - षण करने पर हरिभद्र की प्राकृत कथाकृतियों में निम्नांकित लोककथा के तत्त्व उपलब्ध होते हैं
( १ ) प्रेम का अभिन्न पुट ।
( २ ) स्वस्थ शृंगारिकता ।
( ३ ) मूल प्रवृत्तियों का निरंतर साहचर्यं ।
१——स्टैन्डर्ड डिक्शनरी आफ फॉकलोर, मैथोलोजी ऐंड लीजेन्ड, भाग १, पृ० ४०६ २ - मिल्टन रुगफ्फ - ए हारवेस्ट ऑफ वर्ल्ड फॉक्लोर, पु० १५-१६ ।
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