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________________ १९७ आध्यात्मिक उपदेश देकर आजन्म ब्रह्मचर्य का व्रत दे देता है । इस सन्दर्भ का स्रोत शांतिपर्व में हुए श्वेतकेतु और सुवर्चला के विवाह को मान सकते हैं। श्वेतकेतु विवाह के अनन्तर सुवर्चला को आध्यात्मिक उपदेश देता है और इन्द्रिय विजयी होने के लिए कहता है, यथा- अहमित्येव भावेन स्थितो हं त्वं तथैव च । तस्मात् कार्याणि कुर्वीथाः कुर्या ते च ततः परम् । न ममेति च भावेन ज्ञानाग्निनिलयेन च । अनन्तरं तथा कुर्यास्तानि कर्माणि भस्मसात् ॥ * * तस्माल्लोकस्य सिध्यर्थं कर्त्तव्यं चात्मसिद्धये ब्रह्मवैवर्त पुराण के ६३ वें अध्याय में आया है कि एक समय रात्रि के दुःस्वप्नों को देखकर भयभीत कंस ने सभा में पुत्र, मित्र, बन्धुगण, बान्धव एवं पुरोहित से कहा कि मैंने अर्द्धरात्रि में एक वृद्ध को रक्त पुष्पों की माला धारण एवं लाल चन्दन, लाल वस्त्र, तीक्ष्ण तलवार और खप्पर को हाथ में लिये नाचते देखा है । कंस के इस कथन को सुनकर सत्यकी न े शुभ शांति के लिए धनुर्भव नामक यज्ञ सम्पन्न करने का परामश दिया, यथा- मयादृष्टो निशीथे यो दुःस्वप्नो हि भयप्रद । निबोधत बुधाः सर्वे बान्धवाश्च पुरोहिताः । भयं त्यज महाभाग भयं किं ते मयी स्थिते । कुरु यागं महेशस्य सर्वारिष्टविनाशनम् ॥ यागो धनुर्मखो नाम बहवन्नो बहुदक्षिणः ॥ दुःस्वप्नानां नाशकरः शत्रुभीति विनाशकः ॥ इस स्रोत का प्रभाव हमें हरिभद्र की समराइच्चकहा के चतुर्थ भव के अवान्तर उपाख्यान यशोधर की कथा में मिलता है । यशोधर नं सुरेन्द्र दत्त भव में रात्रि में दुःस्वप्न देखा । प्रातः काल उसकी शांति के लिए चिन्तन करता हुआ सभा में स्थित था । इसी बीच उसकी मां यशोधरा ने श्राकर अरिष्ट शांति के निमित्त आटे के मुर्गे का बलिदान करने के लिए उसे तैयार किया । इसी संकल्पी हिंसा के प्रभाव से उन मां-पुत्र दोनों को श्रनेक भवों तक कष्ट सहना पड़ा । श्रतएव स्पष्ट है कि उक्त दोनों प्राख्यानों का धरातल एक है । केवल वर्णन करने की भिन्नता के कारण कथानक गठन में अन्तर है । जातक कथाओं से हरिभद्र ने कई कथानक अपनाये हैं। यहां दो एक कथानक का उल्लेख करना श्रावश्यक है । नवम भव की कथा में हरिभद्र ने बताया है कि समरादित्य को उसके पिता संसारबंधन में बांधने का प्रयास करते हैं। वे उसके लिए सभी प्रकार की प्रमोद-प्रमोद की सामग्री एकत्र करते हैं । वसन्तोत्सव सम्पन्न करने के लिए कुमार समरादित्य अपने पिता की आज्ञा से रथ पर सवार होकर उद्यान की ओर प्रस्थान करता है । कुछ दूर जाने पर कुमार को देवमन्दिर के एक चबूतरे पर बैठा हुआ कुष्ठ रोगी मिलता है । कुमार Jain Education International १ - - गीताप्रेस द्वारा प्रकाशित महाभारत शांति पर्व २२० प्र० पू० १४९१ | २ -- ब्रह्म० वै० पु० अ० ६३, पृष्ठ ८९३ | ३ - वही, अ० ६४, पृ० ८६५ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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