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और स्थायी प्रभाव रखती हैं । प्रारम्भ की चार कथाएं लेखक की वाक् विदग्धता, कल्पना. प्राचुर्य और घटना योजना की निपुणता व्यक्त करती हैं एवं खंडपाना की कथा बुद्धि, कौशल और सांसारिक ज्ञान को सूचित करती हैं ।
इसमें सन्देह नहीं कि हरिभद्र हास्यप्रधान और व्यंग्यपूर्ण शैली में कथा लिखने में सिद्धहस्त हैं । धूर्त्ताख्यान पौराणिक आख्यानों की व्यर्थता सिद्ध कर विश्वास का परिमार्जन करता है । कथानक प्रक्षेपण के लिए धूत्तों की सहमति -- एग्रीमेन्ट एक महत्वपूर्ण आधार हैं । परस्पर सहयोग के आधार पर धूत ने असंभव और बौद्धिक मान्यतानों और तथ्यों पर व्यंग्य किया है । कथाकार ने स्वयं आक्रमण नहीं किया है, बल्कि पात्रों के वार्त्तालापों द्वारा संकेत उपस्थित किये हैं । धूर्त और मूर्खो के मुंह से पुराणों की हंसी कराना स्वयं ही एक व्यंग्य हैं। जब व स्वयं के अनुभव -मोडल में पौराणिक श्राख्यानों को ढालने लगते हैं, तो निस्सार वस्तु निकल जाती है और तथ्य अवशिष्ट रह जाता हैं । कथानकों में श्रामण करने का तरीका और असंभव बातों की पकड़ बड़े ही कलात्मक ढंग से प्रदर्शित की गयी है। छोटे से फलक और सीमित वातावरण में व्यंग्ययुक्त ऐसे कलात्मक चित्र तैयार करना हरिभद्र जैसे कुशल लेखक का ही कार्य है ।
धूर्त्ताख्यान में सृजनात्मक प्रक्रिया अपनायी गयी हैं । सजीव शैली में वैषम्यपूर्ण, और परस्पर सम्बद्ध तथ्यों का निराकरण समाज निर्माण की दृष्टि से ही किया गया है । कथा के शिल्पविधान का चमत्कार तथा प्रबोधगम्य और उलझनपूर्ण विकृतियों के निरसन किस आलोचक को मुग्ध न करेंगे ?
धूर्ताख्यान में कथा के माध्यम से निम्न तथ्यों सम्बन्धी मान्यताओं का निराकरण किया गया है।
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(१) सृष्टि - उत्पत्तिवाद,
(२) सृष्टि-प्रयवाद,
(३) त्रिदेव स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु और महेश के स्वरूप की मिथ्या मान्यताएं,
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( ४ ) अन्धविश्वास,
( ५ ) अस्वाभाविक मान्यताएं प्रति का वीर्यपान, तिलोत्तमा को उत्पत्ति आदि, (६) जातिवाद,
(७) ऋषियों के सम्बन्ध में असंभव और असंगत कल्पनाएं, और
( ८ ) अमानवीय तत्व ।
सृष्टि की उत्पत्ति के सम्बन्ध में मनुस्मृति, पुराण आदि ग्रन्थों में अनेक मान्यताएं उपलब्ध होती हैं । प्रथम और द्वितीय आख्यान में कथा के द्वारा सृष्टि उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रचलित मिथ्या और असंभव कल्पनाओं का निरसन किया गया है। मूलदेव के अनुभव को सुनकर कण्डरीक कहने लगा कि तुम्हारे और हाथी के कमण्डलु में समा जाने की बात बिलकुल सत्य और विश्वसनीय है । श्रतः पुराणों में बताया गया है कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, भुजात्रों से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य और पैरों से शूद्र का जन्म हुआ है । प्रतः जिस प्रकार ब्रह्मा के शरीर में जनसमुदाय समा सकता है, उसी प्रकार कमण्डलु में तुम दोनों ही समा सकते हो' ।
१ -- मूलदेव प्राख्यान गाथा --२६-३० ।
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