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का सामर्थ्य किसी में नहीं है । इस प्रकार पहले ही दृश्य में कुमार के चरित्र का उज्जवल पथ सामने प्राता है । वास्तव में धीरोदात्त नायक के गुणों की प्रथम झांकी ही हमें उसका भक्त बना देती है ।
वनमन्तर की प्रकारण शत्रुता को देखकर पाठक के मन में हो सकती है कि संघर्ष के प्रभाव में शत्रुता का बीज कहाँ से समाधान " क्रोध वर का प्रचार या मुरब्बा है" से हो जाता है । में जो क्रोध उत्पन्न हुआ था, वह धीरे-धीरे श्राचार बनकर शत्रुता में परिवर्तित हो गया है । अतः क्रोध के श्रालम्बन को देखते ही शत्रुता उभड़ आती है ।
कला के सतत् अभ्यासी कुमार के हृदय में प्रेम व्यापार की जागृति के लिये भी कथाकार ने घटना की सुन्दर योजना की है । शंखपुर नगर के राजा शंखायन की पुत्री रत्नवती अनिन्द्य सुन्दरी है, उसके लिये चित्रमति और भूषण नाम के दो कुशल चित्रकार वरान्वेषण के लिये जाते हैं । अयोध्यानगरी में पहुँचने पर कामदेव के समान अप्रतिम सौन्दर्यशाली कुमार को देखकर ठिठक जाते हैं और कुमार का सुन्दर चित्र तैयार करना चाहते हैं, पर शीघ्रता और चंचलता के कारण चित्र तैयार नहीं हो पाता । फलतः रत्नवती को मनोरम चित्र को कुमार गुणचन्द्र के पास भिजवाते हैं और सूचना प्रेषित करते हैं कि दो चित्रकार प्रापका दर्शन करना चाहते हैं । कुमार चित्रकारों को अपनी सभा में बुलाता है और उनकी चित्रकारी की प्रशंसा करता है । कला से मुग्ध होकर उन्हें लक्ष्य प्रमाण स्वर्ण मुद्राएं पुरस्कार में दिलवाता है । धनदेव नामक कोषाध्यक्ष अपनी लोभ प्रवृत्ति का परिचय देता है, पर उदारचरित कुमार गुणचन्द्र से धनदेव की यह संकीर्णता छिपी नहीं रहती और वह उस धन राशि को दूना कर देता है । उसको यह प्रवृत्ति चित्रकला की मर्मज्ञता के साथ कला और कलाकारों के प्रति सम्मान की भावना व्यक्त करती हैं । उसकी दृष्टि में कला का महत्व भौतिक सिक्कों से मापा नहीं
जा सकता ।
यह आशंका उत्पन्न आया ? पर इसका श्रग्निशर्मा के भव
कुमारी रत्नवती के चित्रदर्शन के अनन्तर ही उसके हृदय में प्रेमांकुर उत्पन्न हो जाता है । कला के सतत् अभ्यासी कुमार का मन अब कलानिर्माण से हटकर सुन्दरी के रूपदर्शन में संलग्न हैं । इधर कुमारी रत्नवती भी कुमार गुणचन्द्र के चित्र दर्शन के पश्चात् हृदय खो बैठती है । इस प्रकार कथाकार ने परस्पर चित्र दर्शन द्वारा दोनों के हृदय में प्रेम का बीज वपन किया है। प्रेम के फलस्वरूप दोनों का विवाह सम्पन्न. हो जाता है ।
कथाकार ने नायक के चरित्र का विकास दिखलाने के लिये उसके अनेक गुणों पर प्रकाश डाला है । वह जितना बड़ा कलाकार है, उतना ही बड़ा उदार और शूरवीर भी । कविता करना, पहेलियों के उत्तर देना एवं रहस्यपूर्ण प्रश्नों के समाधान प्रस्तुत करना, उसे भली प्रकार आता है । चित्रमति और भूषण बुद्धि-चातुर्य की परीक्षा के लिये कुमार से अनेक प्रश्नों के उत्तर पूछते हैं ।
नायक के साथ नायिका के चरित्र की प्रमुख विशेषताएं भी इस कथा के अन्तर्गत विद्यमान हैं । रत्नवती पूर्णतया भारतीय महिला है, पति के प्रति उसके हृदय में टूट भक्ति और प्रेम है। पति के प्रभाव में एक क्षण भी जीवित रहना उसे रुचिकर
१ --- प्राचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखित चिन्तामणि के अन्तर्गत "क्रोध" शीर्षक निबन्ध । २- स० पृ० ८ । ७४८ ।
३ - वही, पृ० ८ । ७४२-७४३ ।
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