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________________ (२) जो उदाहरण दिये जाते हैं, उनसे रूढ़िमुक्त, स्वच्छन्द, श्रद्धारहित, मुंहफट, निश्शील तथा व्यंग्यपटु व्यक्तित्व का पता चलता है। उसके दादा ने उसे नरक से सीख नहीं दी, उसके पिता ने स्वर्ग से नहीं . . . . . . धड़े की चिड़िया की तरह परलोक में जाने वाली प्रात्मा नहीं है। इसी नगर में एक चोर ने राजा के भण्डार में चोरी की । उसे वहां से निकलते समय किसी प्रकार पहरेदारों ने पकड़ लिया और चोरी के माल सहित राजा के समक्ष उपस्थित किया । राजा ने उस चोर के वध का आदेश दिया । अतः वध के लिये लोहे के घड़े में डाल दिया गया, गर्म कर रांग से उस घड़े के मुंह को बन्द कर दिया गया । पहरेदारों को वहां रख दिया गया। उस बन्द घड़े के भीतर वह मर गया । उसकी आत्मा को निकलने का सूक्ष्म मार्ग भी नहीं था। अतः यह मानना चाहिये कि शरीर से भिन्न अन्य कोई आत्मा नहीं है। धर्मगुरु विजयसिंह भी न सिर्फ तर्क का उत्तर देता है, बल्कि उसी गुण के, उपहास श्रीर व्यंग्य से भरे उदाहरण देता है। वह कहता है कि एक प्रवीण एक शांखिक शंख बजाने वाला पाया और वह नगर के सिंह द्वार--मुख द्वार पर बजाता हुआ सभी नागरिकों के कान में भी बजाता था। राजा ने लोगों से पूछा-- कितनी दूर पर शंख बजाया जा रहा है ? उन्होंने उत्तर दिया--महाराज ! सिंह द्वार पर शंख बज रहा है। राजा ने कहा--द्वार के बन्द रहने पर भी वह निवास गह में किस प्रकार प्रवेश कर जाता है ? उसने उत्तर दिया, कहीं भी रुकावट नहीं है। राजा ने उसके कथन का विश्वास न कर उस पुरुष को शंख सहित घड़े में बन्द कर दिया और उससे कहा गया कि अब तुम शंख बजायो और साथ ही घड़े के मुंह को लाख से बन्द कर दिया गया । उसने शंख बजाया और उसके भीतर से शंखध्वनि निकली, राजा और नागरिकों ने उस शंखध्वनि को सूना । उसके निकलने का कहीं छिद्र भी नहीं दिखायी दिया । अब बतायो वह शंखध्वनि कैसे और कहां से निकली ? मशक में हवा भरी गयो', धजन नहीं बढ़ा। लकड़ी काटो, प्राग कहां देखते हों, बोलो बच्चू । इस प्रकार तर्क के उदाहरणों द्वारा हास्य-व्यंग्य की शैली में शील हाता चला हैं । यह ठीक है कि चार्वाक सम्प्रदाय की यह शैली थी, लेकिन उदाहरणों के एकत्रीकरण द्वारा इस निदान निरूपण के प्रसंग में उक्त कटाक्षपूर्ण मधुर वातावरण भुलाया नहीं जा सकता है । प्रतीकों का प्रयोग--मुख्य कथा की निष्पत्ति के लिये लेखक ने अनेक प्रतीकों का प्रयोग कर भावों की अभिव्यंजना को है । यह सत्य है कि प्रतीक कथा के प्रभाव को स्थायित्व ही प्रदान नहीं करते, बल्कि उसमें एक नवीन रस उत्पन्न करते हैं। इस कथा में स्वर्ण घट के टूटने का स्वप्न प्रतीक है। गर्भधारण के इस हिरण्य रूपक में वर्णविलास या धातुभावना है। घट उदर का, रहस्य का, जीव के मण्डलाकार चक्र का प्रतीक है। प्रार्जव, परम्परा सबलता, काव्य-गणसम्पन्नता, दार्शनिक लाक्षणिकता १--...मम पियामही ----------न पडिबोहे इ। --स० पृ० ३।२०८-२०६ । २--वही, पृ० २१७-२११ । ३--इहे गम्मि नयर एगो साविगो विनाणपरिसं संपत्तो----- --स० पृ० ३।२११ । ४--वायरिग्रो ------- वही, पृ० ३।२१२ । ५--इहगण मणस्सण अणि ~~-~-~~~~ वही, पृ० ३।२१२-२१३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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