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उत्कृष्ट रूप है, इस त्याग से ही मानवता का सच्चा विकास होता है । परिग्रह के संचय में दान की भावना रहने से अहंभाव और ममभाव दूर होते हैं। मानव जाति की उन्नति में दान का महत्त्व सर्वदा अक्षुण्ण बना रहेगा। मानवता का पोषण और संवर्द्धन इसी के द्वारा संभव होता है । करुणा, दया, सहानुभूति प्रभृति मानवतापोषक गुणों का उदात्तीकरण दान द्वारा ही होता है । जिस व्यक्ति में यह गुण नहीं है, उसकी संवेदनाएं अन्तर्मुखी नहीं हो सकती हैं और न उसके जीवन में सार्थक रागात्मक क्षणों की सष्टि ही संभव है। अहंभाव का परिष्कार और सम्यक्त्व की दृढ़ता मूर्छा या ममता के त्याग द्वारा ही संभव है। अतएव प्राकृत कथाशिल्प के चतुर्भुजी स्वस्तिक की पहली भुजा दान मानवता के निर्माण के लिए परम उपयोगी है । अतएव कथा शिल्प में इसे प्रावश्यक माना गया है । ___ इस स्वस्तिक की दूसरी भुजा शील है। इसमें ज्ञातृत्व, कर्तत्व और भोक्तत्त्व इन तीनों गुणों की सम्पृक्त अन्विति विद्यमान है । नैतिकता से अनैतिकता, अहिंसा से हिंसा, प्रेम से घृणा, क्षमा से क्रोध, उत्सर्ग से संघर्ष एवं मानवता से पशुता पर विजय प्राप्त करना शील के अन्तर्गत है । प्राकृत कथाकारों की दृष्टि में शील के अन्तर्गत निम्न गुण माने गए
(१) अहिंसा। (२) सत्य । (३) प्रचौर्य । (४) ब्रह्मचर्य । (५) अपरिग्रह । (६) विचार-समन्वय ।
(७) संयम । विश्वप्रेम की गणना अहिंसा के अन्तर्गत आती है। समाज और व्यक्ति के बीच अधिकार और कर्तव्य की श्रृंखला स्थापित करना, उनके उचित सम्बन्धों का संतुलन बनाए रखना, सहयोग की भावना उत्पन्न करना आदि अहिंसा के द्वारा ही संभव है। समाज के भेद-भाव दूर किये जा सकते हैं । अहिंसा का वास्तविक लक्ष्य यही है कि वर्गभेद और जातिभेद से ऊपर उठकर समाज का प्रत्येक सदस्य अन्य के साथ शिष्टता और मानवता का व्यवहार करे। छल, कपट, शोषण आदि अहिंसा के द्वारा ही दूर हो सकते हैं। "स्वयं जियो और अन्य को जोन दो" का पाठ प्रोहसा हो पढ़ा सकती हैं। प्राध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक शक्तियों का विकास अहिंसा के द्वारा ही संभव है ।
अहिंसा व्रत की रक्षा के लिए सत्य का विधान किया गया है । झूठ का विरोधी या विपरीत सत्य है । झूठ के द्वारा ही प्रात्मवंचना, कूटनीति और धोखा दिया जाता है। सत्य के व्यवहार से समाज और व्यक्ति इन दोनों को शांति मिलती है।
अचौर्य द्वारा समाज के अधिकारों की रक्षा की जाती है। जो अनैतिक है, चोरी करता है, वह समाज या राष्ट्र के हितों की रक्षा नहीं कर सकता । अस्तेय की भावना व्यक्ति के विकास के साथ समाज में भी सुख शांति उत्पन्न करती है।
ब्रह्मचर्य का अर्थ है अपनी आत्मा के स्वरूप का आचरण करना । अतः इन्द्रियों की उद्दाम प्रवृत्ति का निग्रह करना ब्रह्मचर्य है ।
अपरिग्रह का अर्थ है परिग्रह का त्याग । परिग्रह की मर्यादा कर लेना भी अपरिग्रह का लघु रूप है । साम्राज्य और पूंजी की आसुरी लीलाएं इस अपरिग्रह के द्वारा ही दूर
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