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यह एक सरस कथा ग्रन्थ है। इसमें जीवन के हर्ष और शोक, शक्ति और दुर्बलता, कुरूपता और सुरूपता इन सभी पक्षों का उद्घाटन किया गया है । लेखक ने विषयासक्त मानव को जीवन के साविक धरातल पर लाने के लिए ही इस श्राख्यान को लिखा है । जीवन की जटिलता, विषमता और विविधता का लेखा-जोखा धार्मिक वातावरण में ही उपस्थित किया हैं । साधुपरिचर्या या मुनि - श्राहारदान से व्यक्ति अपनी कितनी शुद्धि कर सकता है, यह इस आख्यान से स्पष्ट है । जीवन शोधन के लिए व्यक्ति को किसी संबल की आवश्यकता होती है । श्रतः प्राख्यानकार ने इस सीधे कथानक में भी श्रीमती और रति सुन्दरी के प्रणय सम्बन्ध तथा नायक द्वारा उनकी प्राप्ति के लिए किये गये साहसिक कार्यों का उल्लेख कर जीवन की विविधता और विचित्रता के साथ दान और परोपकार का मार्ग प्रदर्शित किया है । जिनदत्त की द्यूतासक्ति उसके परिभ्रमण का निरूपण कर लेखक ने मूल कथावस्तु के सौन्दर्य को पूरी तरह से चमकाया है । यह सत्य है कि यह आख्यान सोद्देश्य है और जिनदत्त को वसन्तपुर के उद्यान में शुभंकर आचार्य के समक्ष दीक्षा दिलाकर मात्र आदर्श ही उपस्थित करना अभीष्ट है । इसे फलागम की स्थिति तो कहा जा सकता है, पर कथा की वह मार्मिकता नहीं है, जो पाठक को झटका देकर विलास और वैभव से विरत कर 'पेट भरो पेटी न भरो' की ओर ले जा सके ।
नायक के चरित्र में सहृदयता, निष्पक्षता और उदारता इन तीनों गुणों का समावेश हैं । इतना सब होते हुए भी इस प्राख्यान में मानव की समस्त दुर्बलताओं और सबलताओं का अंकन नहीं हो पाया है । अतः राग-द्वेष का परिमार्जन करने के लिए पाठक नायक के साथ पूर्णतया तादात्म्य नहीं स्थापित कर पाता है ।
पात्रों के कथोपकथन तर्कपूर्ण हैं । उदाहरणार्थ विमलमति और जिनदत्त का उद्यान में मनोरंजनार्थ किया गया प्रश्नोत्तर रूप वार्तालाप उद्धृत किया जाता है । विमलमति ने पूछा-
किं मरुथली दुलहं ? का वा भवणस्स भूसणी भणिया ?
कं कामइ सेलसुया ? कं पियइ जुवाणम्रो तुट्टो ॥ १०० ॥ पढियाणंतरमेव लद्धं जिणयतेण -- कंताहर
अर्थ - - मरुस्थली में कौन वस्तु दुर्लभ है ? भवन का भूषण स्वरूपा कौन है ? वसुता पार्वती किसको चाहती हैं ? प्रिया के किस अंग से युवक सन्तुष्ट रहते हैं ?
जिनदत्त ने उत्तर दिया-- कंताहरं, अर्थात् प्रथम प्रश्न के उत्तर में कहा कि मरुभूमि में जल की प्राप्ति दुर्लभ है। द्वितीय प्रश्न के उत्तर में कहा कि घर की भूषण स्वरूपा कान्ता - नारी हूँ | तृतीय प्रश्न के उत्तर में कहा कि हरं शिव को पार्वती चाहती है और चतुर्थ प्रश्न के उत्तर में कहा कंताहरं कान्ताधर युवकों को प्रिय हैं ।
रचना विधान की दृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होता है कि पूर्व जन्म के संस्कारों का फल दिखलाने के लिए जिनदत्त के पूर्वभव की कथा वर्णित हैं । घटित होने वाली छोटी-छोटी घटनाएं संगठित तो हैं, पर स्थापत्यकला की विशेषताएं प्रकट नहीं हो पायी हैं। समूची कथा का कथानक ताजमहल की तरह निर्मित नहीं हैं, जिसकी एक भी इंट इधर-उधर कर देने से समस्त सौन्दर्य विघटित हो जाता है । यों तो कथा में प्रारम्भ और अन्त भी शास्त्री आधार पर घटित नहीं हुए हैं, किन्तु संक्षिप्त कथोपकथन मर्मस्पर्शी और प्रभावोत्पादक हैं ।
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