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पुस्तक विद्वान् मात्र को उपयोगी होता हुआ खास करके जैनेतर विद्वान् को अधिक उपयोगी होगा ऐसा हमारा मानना है !
पण्डितजी ने इस पुस्तक को लिखकर अपनी प्रतिभा का विद्वान् जगत को परिचय दिया है, यह उनके लिये थोड़ी ख्वाति नहीं है। हमारा अन्तःकरण ज़रूर क़बूल करता है कि जो कोई भी निष्पक्ष विद्वान् इस पुस्तक को साद्यन्त पढ़ेगा अवश्यमेव सिर हिलायेगा और पण्डित जी को धन्यवाद दिये विना न रहेगा। __हम पण्डितजी का कर्तव्य समझते हैं कि वे इसी तरह के साहित्य से जगत की सेवा करके अपने जीवन को सार्थक करें।
श्री आत्मानन्द जैन पुस्तक प्रचारक मण्डल को इस विषय में यदि धन्यवाद दिया जाय तो अनुचित न होगा, क्योंकि जिसने परिश्रम द्वारा पुस्तक तैयार कराकर उसका उपयोग अधिकतर होवे इस हेतु द्रव्य सहायदाता खड़ा करके अल्प मूल्य में जनता के हाथ में पहुँचाने की उदारता दिखलाई है। अन्य धनिकों को भी चाहिये कि वे अजीमगंज (मुर्शिदाबाद) निवासी स्वर्गीय बाबूजी डालचन्द्रजी सिंघी का अनुकरण करके अपने सद्व्य का ऐसे सदुपयोग में व्यय करें।
। सही-श्रीविजयानन्द सूरिवर्य पट्टधर
प्राचार्य विजयवल्लभ सूरि महाराज । पाटण गुजरात
प्रवर्तकता. १४-७-२८
श्री कान्तिविजय जी महाराज
महाराज श्री हंसविजय जी
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