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जैन धर्म-दर्शन
२. परोक्ष ज्ञान के दो भेद - १. मति और २. श्रुत । ३. प्रत्यक्ष ज्ञान के तीन भेद - १. अवधि, २. मन:पर्यय, ३. केवल ।
नन्दीसूत्र की प्रमाण-व्यवस्था में थोड़ा सा परिवर्तन क परिवर्धन है । वह इस प्रकार है :
ज्ञान दो प्रकार का है - प्रत्यक्ष और परोक्ष ।
प्रत्यक्ष तीन प्रकार का है-- इन्द्रिय, नो-इन्द्रिय और मतिज्ञान ।
इन्द्रियों के पाँच भेद स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और
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श्रोत्र ।
नी- इंद्रियज्ञान के तीन भेद - अवधि, मन:पर्यय और केवल । मतिज्ञान के दो भेद - श्रुतनिश्रित, अश्रुतनिश्रित । श्रुतनिश्रित के चार भेद - अवग्रह, ईहा, अवाय और
धारणा ।
अश्रुतनिश्रित के चार भेद - औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा ओर पारिणामिकी ।
परोक्ष ज्ञान - श्रुतज्ञान ।
हरिभद्र :
आचार्य हरिभद्र ने प्रमाणशास्त्र पर कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ तो नहीं लिखा किन्तु अपनी अन्य कृतियों में इस विषय का पर्याप्त प्रतिपादन किया । अनेकान्तजयपताका लिखकर उन्होंने बौद्ध एवं इतर दार्शनिकों के आक्षेपों का उत्तर दिया और अनेकान्त के स्वरूप को नये रूप में सबके सामने रखा। हरिभद्र ने दिङ्नागकृत न्यायप्रवेश पर टीका लिखी । इस टीका द्वारा उन्होंने ज्ञान के क्षेत्र में
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