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________________ ८४ जैन धर्म-दर्शन २. परोक्ष ज्ञान के दो भेद - १. मति और २. श्रुत । ३. प्रत्यक्ष ज्ञान के तीन भेद - १. अवधि, २. मन:पर्यय, ३. केवल । नन्दीसूत्र की प्रमाण-व्यवस्था में थोड़ा सा परिवर्तन क परिवर्धन है । वह इस प्रकार है : ज्ञान दो प्रकार का है - प्रत्यक्ष और परोक्ष । प्रत्यक्ष तीन प्रकार का है-- इन्द्रिय, नो-इन्द्रिय और मतिज्ञान । इन्द्रियों के पाँच भेद स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और - श्रोत्र । नी- इंद्रियज्ञान के तीन भेद - अवधि, मन:पर्यय और केवल । मतिज्ञान के दो भेद - श्रुतनिश्रित, अश्रुतनिश्रित । श्रुतनिश्रित के चार भेद - अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा । अश्रुतनिश्रित के चार भेद - औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा ओर पारिणामिकी । परोक्ष ज्ञान - श्रुतज्ञान । हरिभद्र : आचार्य हरिभद्र ने प्रमाणशास्त्र पर कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ तो नहीं लिखा किन्तु अपनी अन्य कृतियों में इस विषय का पर्याप्त प्रतिपादन किया । अनेकान्तजयपताका लिखकर उन्होंने बौद्ध एवं इतर दार्शनिकों के आक्षेपों का उत्तर दिया और अनेकान्त के स्वरूप को नये रूप में सबके सामने रखा। हरिभद्र ने दिङ्नागकृत न्यायप्रवेश पर टीका लिखी । इस टीका द्वारा उन्होंने ज्ञान के क्षेत्र में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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