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प्राक्कथन
प्रस्तुत ग्रन्थ में भारतीय धर्म-दर्शन के एक महत्त्वपूर्ण अंग जैन धर्मदर्शन का प्रामाणिक परिचय दिया गया है । इसे जैन धर्म-दर्शन का एक प्रतिनिधि ग्रन्थ कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी । विश्वास है कि हिन्दी साहित्य में इस कृति को समुचित स्थान प्राप्त होगा तथा जैन धर्म एवं दर्शन के ज्ञानार्जन में यह ग्रन्थ उल्लेखनीय योगदान करेगा । इससे पूर्व प्रकाशित इसके दो संस्करण राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश की सरकारों द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हो चुके हैं।
प्रस्तुत पुस्तक सात अध्यायों में विभक्त है । प्रथम अध्याय में जैन परम्परा का ऐतिहासिक परिचय दिया गया है । द्वितीय अध्याय में जैन धर्म एवं दर्शन से सम्बद्ध साहित्य की संक्षिप्त रूपरेखा है । तृतीय अध्याय में जैन दर्शनाभिमत तत्त्वव्यवस्था का प्रतिपादन किया गया है । चतुर्थ अध्याय में जैन ज्ञानवाद एवं प्रमाणशास्त्र की मीमांसा की गई है । पंचम अध्याय सापेक्षवाद अर्थात् स्याद्वाद - अनेकान्तवाद से सम्बद्ध है । षष्ठ अध्याय में जैन कर्मसिद्धान्त का विस्तृत विवेचन है । सप्तम अध्याय में जैनाचार अर्थात् श्रमणाचार तथा श्रावकाचार का संक्षिप्त परिचय दिया गया है । इस प्रकार जैन धर्म-दर्शन के समस्त महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर प्रस्तुत पुस्तक में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है । यथास्थान स्वतन्त्र समीक्षा भी की गई है । अन्त में परिशिष्ट है जिसमें अपने अन्यत्र प्रकाशित जैन कला एवं स्थापत्य, श्रमण-संघ, हिंसा-अहिंसा का जैन दर्शन, अकलंकदेव की दार्शनिक कृतियां, हेमचन्द्राचार्य की साहित्य-साधना तथा महावीर ब्राह्मण थे, क्षत्रिय नहीं - इन छ : महत्त्वपूर्ण लेखों का समावेश है । विश्वास है कि यह ग्रन्थ धर्म-दर्शन के जिज्ञासु पाठकों, विद्वज्जनों एवं विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों - सबके लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगा।
मोहनलाल मेहता
बी - १८, अनगल पार्क चतुःशृंगी, पुणे - ४११०१६ २५.८.१९९९
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