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जैन धर्म-दर्शन
औपदेशिक प्रकरणों में आचार्य धर्मदास कृत उपदेशमाला, शान्तिसूरि-कृत धर्म रत्नप्रकरण, देवेन्द्रसूरि-कृत श्राद्धविधिप्रकरण, मलधारी हेमचन्द्रसूरिकृत भवभावना, वर्द्धमानसूरि कृत धर्मोपदेशमाला आदि का समावेश होता हैं । वट्टकेराचार्य - कृत मूलाचार एवं शिवार्य - कृत मूलाराधना भी आचारशास्त्रान्तर्गत औपदेशिक कोटि के उत्कृष्ट ग्रंथ हैं ।
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आगमिक प्रकरणों में मुख्यतया द्रव्यानुयोग ( तत्त्वज्ञान ) एवं गणितानुयोग ( भूगोल -खगोल ) से सम्बद्ध ग्रंथों का समावेश होता है । इस प्रकार के कुछ ग्रन्थ ये हैं : शिवशर्मप्रणीत कर्मप्रकृति, चन्दषि-प्रणीत पंचसंग्रह, जिनभद्र- कृत विशेषणवती, हरिभद्र - कृत योगशतक, मुनिचन्द्र - विहित वनस्पतिसप्तति, श्रीचन्द्र - विहित संग्रहणीप्रकरण, चक्रेश्वरप्रणीत सिद्धान्तसारोद्धार, देवेन्द्र प्रणीत कर्मग्रन्थ पंचक, सोमतिलक - कृत बृहत्क्षेत्र समासप्रकरण, रत्नशेखर - रचित क्षेत्र समास, यतिवृषभ विरचित त्रिलोकप्रज्ञप्ति, नेमिचन्द्र - विहित गोम्मटसार, पद्मनन्दि कृत जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसंग्रह ।
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तत्त्वार्थ सूत्र :
आचार्य उमास्वाति ने जैन तत्त्वज्ञान, आचार, खगोल, भूगोल आदि अनेक विषयों का संक्षेप में प्रतिपादन करने की दृष्टि से प्रसिद्ध ग्रन्थ 'तत्त्वार्थसूत्र' लिखा । ग्रन्थ की भाषा प्राकृत न रखकर संस्कृत रखी ।
उमास्वाति कब हुए, इस विषय में अभी कोई निश्चित मत नहीं है । वाचक उमास्वाति का प्राचीन से प्राचीन समय विक्रम की पहली शताब्दी और अर्वाचीन से अर्वाचीन समय तीसरीचौथी शताब्दी है । इन तीन-चार सौ वर्ष के बीच में उनका समय पड़ता है ।
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