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________________ हिंसा-अहिंसा का जैन दर्शन अहिंसा हिंसा का निषेधात्मक रूप अथवा अभावात्मक पक्ष है । हिंसा का स्वरूप जानना अहिंसा के सम्यग्ज्ञान के लिए अनिवार्य है । जैन दार्शनिकों ने उस क्रिया को हिंसा कहा है जो प्रमाद अथवा कषायपूर्वक होती हो । दूसरे शब्दों में, प्रमत्तयोग अथवा सकषाय प्रवृत्ति से होने वाला प्राणवध हिंसा है । वैसे प्रमाद और कषाय में अन्तर है किन्तु यहां दोनों को हिंसा का कारण समझना चाहिए । प्रमत्त अवस्था में कषाय की विद्यमानता होती ही है किन्तु कषाय की उपस्थिति में प्रमाद का सदुभाव होता भी है और नहीं भी । प्रमाद अथवा कषाय हिंसा का कारण है और प्राणवध कार्य । प्राणवध का अर्थ प्राणिवध नहीं है, यद्यपि प्राणिवध का समावेश भी प्राणवध में होता है । प्राण का अर्थ है जीवन की शक्ति विशेष । यह शक्ति विविध इन्द्रियों, मन, वचन, काय, श्वासोच्छ्वास और आयु के रूप में उपलब्ध होती है । इनमें से किसी एक को अथवा अनेक को अथवा सबको हानि पहुंचाना हिंसा है - प्राणवध है । यह हिंसा मन से अथवा मन की, वचन से अथवा वचन की एवं काय से अथवा काय की होती है अर्थात् जिनसे हिंसा की जाती है उन्हीं की हिंसा होती भी है । संक्षेप में हिंसा का सम्बन्ध दो से है : मन से और शरीर से । मन में उन सबका समावेश होता है जिनका प्रमाद, कषाय आदि से सम्बन्ध है। इसे जैन परिभाषा में भाव हिंसा (मानसिक हिंसा) कहते हैं। शरीर में वे सब समाविष्ट हैं जो कायिक अथवा स्थूल हैं। इसे जैन विचारक द्रव्य हिंसा (शारीरिक हिंसा) कहते हैं । ___ यदि भाव और द्रव्य के इस रूप को हम ध्यान में रखें तो हिंसा-अहिंसा के निम्नोक्त चार रूप बनते हैं। १. जो हिंसा भावरूप भी है और द्रव्यरूप भी, ऐसी हिंसा को हम पूर्ण हिंसा कहेंगे । इसमें हिंसक प्रमत्त प्रवृत्ति भी करता है और प्राणवध भी । यह हिंसा का उत्कृष्ट रूप है । २. जो हिंसा केवल भावरूप है, ऐसी हिंसा किसी अंश में अपूर्ण होती है । इसमें केवल प्रमत्त प्रवृत्ति होती है । इसे हम अपूर्ण अहिंसा भी कह सकते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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