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________________ श्रमण संघ ? जैनसंघ के चार अंग हैं : श्रावक, श्राविका साधु और साध्वी । श्रावकश्राविकाओं का वैसा कोई सुव्यवस्थित एवं नियमित धार्मिक संगठन नहीं होता जैसा साधु-साध्वियों का श्रमणसंघ होता है। श्रावक-श्राविकाओं को अपने व्रत, नियम, कर्तव्य आदि के पालन में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता होती है । वे अपनी रुचि, शक्ति, परिस्थिति आदि के अनुसार यथायोग्य धार्मिक क्रिया-काण्ड करते हैं एवं समाज के सामान्य नियमानुसार व्यावहारिक प्रवृत्तियों में लगे रहते हैं । साधु-साध्वियों का सुव्यवस्थित संगठन होता है तथा उन्हें अनिवार्यतः धार्मिक विधानानुसार कार्य करना पड़ता है । जैन आचारशास्त्र में स्थविरकल्पिक मुनि के लिए व्रतपालन की भिन्न व्यवस्था की गई है एवं जिनकल्पिक मुनि के लिए भिन्न । जिनकल्पिक मुनि का आचार अति कठोर तपोमय होता है, अतः उसे विशेष प्रकार के संगठन अथवा सामूहिक मर्यादाओं में न बाँधकर एकाकी विचरने की अनुमति दी गई है । वह एकलविहारी एवं एकान्तविहारी होकर ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। स्थविरकल्पिक के विषय में यह बात नहीं है । वह एकाकी रहकर संयम का पालन समुचित रूप से नहीं कर सकता । उसकी मानसिक भूमिका अथवा आध्यात्मिक भूमिका इतनी विकसित नहीं होती कि वह अकेला रहकर सर्वविरत श्रमधर्म का पालन कर सके । इसलिए स्थविरकल्पिकों के लिए संघव्यवस्था की गई है। संघ से पृथक् होकर विचरण करने वाले स्थविरकल्पिकों के विषय में आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के पंचम अध्ययन में स्पष्ट कहा गया है कि एकचारी बहुक्रोधी, बहुमानी, बहुमायी एवं बहुलोभी होते हैं । वे 'हम तो ध र्म में उद्यत हैं, ऐसा अपलाप करते हैं । वस्तुतः उनका दुराचरण कोई देख न ले इसलिए वे एकाकी विचरते हैं । वे अपने अज्ञान एवं प्रमाद के कारण ध र्म को नहीं जानते । व्यवहारसूत्र के प्रथम उद्देश में एकलविहारी साधु के विषय में कहा गया है कि कोई साधु गण का त्याग कर अकेला ही विचरे और बाद में पुनः गण में सम्मिलित होना चाहे तो उसे आलोचना आदि (प्रायश्चित्त) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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